Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| पवित्ती पासणयातेसि संखडी सड्डो । परलोइआ गिलाणे चेइय वाई य पडिणी ॥४॥ अविहीपुच्छा अस्थित्थ संजया ? नत्थि, | तत्थ समणीओ। समणीसु अता नत्थी संका य किसोरवडवाए ॥ ५ ॥ सड्ढेसु चरिअकामो संकाचारी य होइ सड्ढीसुं। चेइयघरं व नत्थि तुम्हा उ विहीइ पुच्छेज्जा ॥६॥ गामदुवारब्भासे अगडसमीवे महाणमज्झे वा । पुच्छेज्ज सयंपक्खा विआलणे तस्स | परिकहणा॥७॥ निस्संकिअ थूभाइस काउं गच्छेज्ज चेइअघरं तु। पच्छा साहुसमीवं तेऽवि अ संभोइया तस्स ॥८ ॥ निक्खिविडं | किइकम्मं दीवणणाबाह पुच्छण सहाओ । गेलण्ण विसजणया अविसज्जुवएस दावण्या ॥९ ॥ पुणरवि अयं खुभिज्जा अयाणगा मोस भणिज्ज संचिक्खे। उभओऽवि अयाणंता वेज्जं पुच्छंति जयणाए ॥७०॥ गमणे पमाण उवगरण सउण वावार ठाण उवएसो । | आणण गंधुदगाई उट्टमणुट्टे अ जे दोसा ॥१॥ पढमावियारजोगं नाउं गच्छे बिइज्जए दिण्णे । एमेव अण्णसंभोइयाण अण्णाइ वसहीए ॥ २ ॥ एगागि गिलाणंभि उ सिद्धेतो किं न कीरई वावि ? | छ्गमुत्तकहणपाणगधुवणऽत्थर तस्स नियगं वा ॥३॥ सारवणं | साहल्लय पागड धुवणे य सुइ समायारा। अइबिंभले समाही सहस्स आसास पडिअरणं ॥ ४ ॥ सयमेव दिट्ठपाढी करेइ पुच्छइ अयाणओ | वेज्जं । दीवण दव्वाइंमि अ उवएसो जाव लंभो ॥५ ॥ कारणिअ हट्ट पेसे गमणऽणुलोमेण तेण सह गच्छे। निक्कारणिअ खरंटण | बिइज्ज संघाडए गमणं ॥६॥ समणिपवेसि निसीहिअ दुवारवजण अदिट्ठ परिकहणं । थेरीतरुणिविभासा निमंत्रणाबाहपुच्छाय ॥७॥ सिटुंमि सहू पडिणीयनिग्गहं अहव अण्णहिं पेसे । उवएसो दावणया गेलन्ने वेजपुच्छा ॥८॥ तह चेव दीवण चउक्कएण अन्नत्थ [ ॥ श्री ओघनिर्युक्तिसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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