Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारस्थियस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंतं वा साइज्जइ ॥७८॥
जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साईज्जइ ॥७९॥
जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंतं वा साइज्जइ ॥८०-१०३॥
जे भिक्खू जायणावत्थं वा निमंतणावत्थं वा अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ । से य वत्थे चउण्हमण्णयरे सिया तं जहा-णिच्च निवसणिए १ मज्जणिए २ छणूसविए ३ रायदुवारिए ४ ॥१०४॥
जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जतं वा साइज्जइ ॥१०५।।
एवं तइयउद्देसगमओ जाव-जे भिक्खू गामाणुगामं दूइज्जमाणे विभूसावडियाए अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करतं वा साइज्जइ ॥१०६-१६०॥
जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धरेइ धरंतं वा साइज्जइ ॥१६१॥
जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा जाव पायपुंछणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धोवेइ धोवंतं वा साइज्जइ ।।१६२॥ तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥१६३॥ ॥ णिसीह ज्झयणे पणरसमो उद्देसो समत्तो ॥१५॥
॥ षोडशोदेशकः ॥ जे भिक्खू सागारियसेज्जं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥१॥ जे भिक्खू सोदगं सेज्जं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥२॥ जे भिक्खू सागणियं सेज्जं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ ॥३॥ जे भिक्खू सचित्तं उच्छं भुंजइ भुजंतं वा साइज्जइ ॥४॥ एवं पण्णरसमे उद्देसे अंबस्स जहा गमो सो चेव इहंपि णेयन्वो ॥५-९॥
जे भिक्खू आरण्णगाणं वणवयाणं अडविजत्तासंपट्टियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥१०॥
શ્રી નિશીથ સૂત્ર