Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 17
________________ इस प्रकार अनुत्तरौपपातिक सूत्र में भगवान महावीरकालीन उग्र तपस्वियों में महादुष्करकारक और महानिर्जराकारक धन्य अनगार ही थे। स्वयं भगवान महावीर ने सम्राट श्रेणिक को बताया था कि चौदह हजार श्रमरणों में धन्य अनगार उत्कृष्ट तपोमूर्ति हैं। इस प्रकार धन्य अनगार नव मास की स्वल्पावधि में उत्कृष्ट साधना कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवनकर बे मनुष्यजन्म पाकर तपःसाधना के द्वारा सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। काकन्दी की भद्रा सार्थवाही का द्वितीय पुत्र सुनक्षत्रकुमार था। उसका वर्णन भी धन्यकुमार की तरह ही समझना चाहिए। शेष आठ कुमारों का वर्णन प्रायः भोग-विलास में तथा तप-त्याग में सुनक्षत्र के समान ही समझना चाहिए। इस प्रकार प्रस्तुत अनुत्तरोपपातिक सूत्र में तेतीस महापुरुषों का परिचय दिया गया है। यह वर्णन संपूर्ण प्रकार से प्राचीन समय की परिस्थिति का द्योतक है अतएव ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यद्यपि श्रमसंघ के युवाचार्य विद्वद्वरेण्य पं. र. मुनिश्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' ने, जिनके नेतृत्व में प्रागमबत्तीसी का प्रकाशन हो रहा है, इसे अक्षरशः अवलोकन कर लिया है और भारिल्लजी ने संशोधन कर दिया है, अतएव मैं निश्चित हूँ। प्रस्तुत सूत्र में मूल आगम-वारणी का एवं उसके व्याख्या-साहित्य का संक्षेप में परिचय दिया गया है, जिससे प्रबुद्ध पाठकों को आगम की महत्ता का परिज्ञान हो सके। कई वर्षों से आगमसेवा के प्रति मेरे मन के कण-कण में, अणु-अणु में, गहरी निष्ठा रही है / कर्मवर्गरणा से पृथक होने के लिए प्रागम का स्वाध्याय एक रामबाण औषध है। सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा की पावनी वाणी में जो तात्त्विक रहस्य प्राप्त होता है वह अल्पज्ञों की वाणी में कदापि नहीं मिल सकता / वास्तविक तथ्यों को जानने के लिए तत्त्वज्ञ गुरु का अनुग्रह परम आवश्यक है। ज्ञानी गुरु के बिना आगमों के गहन रहस्यों को समझना अल्पज्ञों के लिए अशक्य है। ___ गुरु का संयोग प्राप्त होने पर भी जब तक छद्मस्थदशा है तब तक त्रुटियों की संभावना बनी ही रहती है / अतएव गहन रहस्यों से अनभिज्ञ होने से प्रस्तुत अनुवाद में कहीं अर्थ की त्रुटियां रही हों तो पाठक क्षमा करें। इस प्रकार पूरी तरह समर्थ न होने पर भी परम श्रद्धय सद्गुरुवर्य, अनुयोग-प्रवर्तक श्री कन्हैयालालजी म. (कमल) एवं परमोपकारी पूजनीया मातेश्वरी महासती श्री माणेककुवरजी म. की पावनी कृपा शोभाचन्द्रजी भारिल्ल की अनन्य प्रेरणा से, तथा परमादरणीय पू. प्रात्मारामजी म. सा. एवं श्री विजयमूनिजी म की धत-सहायता से एवं मेरे सहयोगी अन्य साध्वी-समवाय के परम सहयोग से यह कार्य सम्पन्न करने में समर्थ हुई हूँ। आशा है इन सभी का सहयोग निरंतर मिलता रहे और भविष्य में भी भागम-सेवा का अलभ्य लाभ मुझे मिलता रहे, यही हार्दिक कामना। मुझे आशा ही नहीं संपूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत प्रागम जन-जन के अन्तर्मानस में वीतराग परमात्मा के प्रति गहरी निष्ठा उत्पन्न करेगा। अज्ञान अंधकार को नष्ट करके ज्ञानप्रकाश फैलाएगा। इसी प्राशा और उल्लास के साथ प्रस्तुत प्रागम प्रबुद्ध पाठकों को समर्पित कर अत्यंत आनंद का अनुभव करती है साध्यसाधिका আগুনী সুজিনস Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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