Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 125
________________ 12] सामाइयमाइयाइं सामायिक आदि सामी=स्वामी साहस्सीणं = सहस्रों में-(सहस्रों का) सिझणा - सिद्धि सिज्झहिति= सिद्ध होगा सिढिल-कडाली = ढीली लगाम सिण्हालए =सेफालक नामक फल विशेष सिद्धि-गति-नामधेयं = सिद्धि गति नाम वाले सिलेस-गुलिया =श्लेष्म की गुटिका सिवं- कल्याणरूप सीस --शिर सीस-घडीए - शिररूपी घट से सीसस्स = शिर की सीहसेणे = सिंहसेन कुमार सीहे = सिंह कुमार सीहो=सिंह, शेर सुकयत्थे = सुकृतार्थ, सफल सुक्कं = सूखा हुआ सुक्क-छगणिया = सूखा हुआ गोबर, गोहा-छाणा सुक्क-छल्ली - सूखी हुई छाल सुक्कदिए सूखी हुई मशक सुक्क-सप्प-समाणाहिं = सूखे हुए सर्प के समान सुक्का = सूखी हुई, सूखे हुए सुक्कातो सूखी हुई से सुक्केण = सूखे हुए सुणक्खत्त-गमेणं = सुनक्षत्र के समान सुणक्खत्तस्स = सुनक्षत्र के सुणक्खत्त = सुनक्षत्र कुमार सुपुण्णे = अच्छे पुण्य वाला सुमिणे = स्वप्न में सुरूपे = सुन्दर, अच्छे रूप वाला / अनुत्तरौपपातिकदशा सुलद्ध = अच्छी तरह से प्राप्त सुहम्मस्स = सुधर्मा नामक गणधर का सुहम्मे= सुधर्मा स्वामी सुहुय० (सुहुय-हुयासण इव) = अच्छी तरह से जली हुई अग्नि के समान सुद्धदंते = शुद्धदन्त कुमार से= वह, उसके से = अथ, प्रारम्भ-बोधक अव्यय सेणिए (ते)= श्रेणिक राजा सेणियो-श्रोणिक राजा सेणिया हे श्रेणिक ! सेसं शेष (वर्णन), बाकी सेसा=शेष सेसाणं = शेषों का सेसाणवि = शेषों का भी सेसावि = शेष भी सोच्चा=सुनकर सोणियत्ताए (ते) = रुधिर के कारण सोलस =सोलह सोहम्मीसाण == सौधर्म और ईशान नामक पहला और दूसरा देवलोक हकुब-फले = हकुब वनस्पति विशेष का फल हट्ठ-तुट्ठ = प्रसन्न और सन्तुष्ट हणुयाए चिबुक, ठोड़ी की हत्थंगुलियाणं - हाथों की अंगुलियों की हत्थाणं = हाथों की हत्थिणपुरे हस्तिनापुर में हल्ले हल्ल कुमार हुयासणे (इव) =अग्नि के समान होति होते हैं होत्था= था, थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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