Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 62] [ अनुत्तरौपपातिकदशा शेष चार उत्क्रम से उत्पन्न हुए, जैसे कि-अपराजित में लष्टदन्त, जयन्त में बेहल्ल, वैजयन्त में वेहायस विजय में अभय / उक्त दश कुमारों के सम्बन्ध में शेष वर्णन प्रथम अध्ययन में वर्णित जालिकुमार के वर्णन के समान समझ लेना चाहिए / लद्वदन्त ___इस नाम का उल्लेख प्रथम वर्ग में भी आ चुका है। वहाँ माता धारिणी तथा पिता श्रेणिक है, और उपपात जयंतविमान में बताया है। द्वितीय वर्ग में भी लठ्ठदन्त नामका उल्लेख पाता है, और वहाँ भी माता धारिणी तथा पिता श्रेणिक ही हैं, तथा उपपात वैजयन्त विमान में बताया है / प्रश्न होता है, कि क्या यह लट्ठदन्त एक ही व्यक्ति का नाम है, या भिन्न व्यक्तियों का एक ही नाम है ? एक व्यक्ति का नाम होने पर किसी भी तरह संगति नहीं बैठ सकती। एक व्यक्ति का अलगअलग उपपात नहीं हो सकता / और संख्या प्रथम वर्ग की 10 और इस वर्ग की 13 दोनों मिलकर 23 होनी चाहिए, यह भी एक व्यक्ति मानने पर कैसे हो सकता है ? 'श्रमण भगवान महावीर' के लेखक पूरातत्त्ववेत्ता आचार्य कल्याणविजयजी ने अपनी उक्त पुस्तक के प्र.६३ पर तीर्थकर जीवन वाले प्रकरण में लिखा है-'श्रेणिक की उपर्युक्त घोषणा का बड़ा सुन्दर प्रभाव पड़ा। अन्यान्य नागरिकों के अतिरिक्त जालिकूमार, मयालि, उपयालि, पूरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, वेहल्ल, वेहास, अभय, दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रम, द्रुमसेन, महाद्र मसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन तथा पूर्ण सेन-श्रेणिक के इन तेईस पुत्रों और नन्दा, नन्दामती, नन्दोत्तरा, नन्दसेणिया, मरुया, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना और भूतदत्ता नाम की श्रेणिक की तेरह रानियों ने प्रवजित होकर भगवान् महावीर के श्रमणसंघ में प्रवेश किया।" अस्तु, विभिन्न स्थलों पर आया लष्टदन्त नाम किसी एक व्यक्ति का न होकर भिन्न व्यक्ति का होने से ही सूत्रोक्त उल्लेख संगति पा सकता है / इस सम्बन्ध में विशेष गम्भीरता से सोचने पर जो संगति मालूम हुई है, वह इस प्रकार है: प्राकृत शब्द के संस्कृत में भिन्न-भिन्न उच्चारण हो सकते हैं : जैसे 'कय' का संस्कृतरूपान्तर कज, कच, कृत / 'कई' का कपि, कवि / 'पुण्या' का पुण्य अथवा पूर्ण / इसी प्रकार 'लट्ठदन्त' शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण होना असंगत नहीं। जैसे कि लष्टदन्त एवं राष्ट्रदान्त / लष्टदन्त का अर्थ है-मनोहर दांत वाला / दूसरे उच्चारण राष्ट्रदान्त का अर्थ है, जिसने राष्ट्र का दमन किया हुया है अर्थात् जिसने राष्ट्र-देश को अपने वश में किया हुआ है। एक नाम 'पुण्णसेण' भी आता है, जिस प्रकार उसके पुण्यसेन अथवा पूर्णसेन ऐसे दो उच्चारण असंगत नहीं, इसी प्रकार प्रस्तुत प्रथम वर्ग में और द्वितीय वर्ग में आए हुए 'लट्ठदन्त' शब्द के 'लष्टदन्त' तथा 'राष्ट्रदन्त' ऐसे भिन्न-भिन्न उच्चारण असंगत नहीं। इस प्रकार विचार करने से लट्ठदन्त तामके दो व्यक्तियों की संभावना की जा सकती है, और इसी तरह से 33 की संख्या में संगति हो सकती है। इसके सम्बन्ध में एक दूसरी युक्ति भी है, वह यह है : पिता का नाम तो एक श्रेणिक ही ठीक है, परन्तु माताएँ इन दोनों की अलग-अलग हो सकती हैं। यद्यपि दोनों की माता का नाम धारिणी मूलपाठ में दिया हुआ है, परन्तु ये धारिणी नाम वाली दो रानियां भी हो सकती हैं / श्रेणिक राजा के कई रानियां थीं यह तो निविवाद है, तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org