Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 109
________________ 76 [अनुत्तरौपपातिकदशा 12. काउस्सग्ग कायोत्सर्ग, कायिक ममत्व का परित्याग, एवं शारीरिक क्रियाओं का परित्याग / 13. गुणरयण तवोकम्म गुण-रत्न तप / यह तप 16 मास का है, जिस में प्रथम मास में एक उपवास, दूसरे में दो और क्रमश: बढ़ते १६वें में 16 उपवास होते हैं। 14. गुत्तबंभयारी ___ मन, वचन और काय को संयत करने वाला ब्रह्मचारी भिक्षु / 15. छ? एक साथ दो उपवास अर्थात् दो दिन संपूर्ण आहार का परित्याग एवं अगले-पिछले दिन एकाशन करके छह वार के भोजन ग्रादि का त्याग करना / 16. जयण-घडण जोग-चरित्त यतन-यत्न, यतना, विवेक, प्राणि-रक्षा करना / घटन-प्रयत्न, उद्यम, पुरूषार्थ / योगसंबन्ध, मिलाप, जोड़ना / जिसमें याना और उद्यम है, इस प्रकार के चारित्र या चरित्र वाला व्यक्ति / 17. तव तपः, जिससे कर्मों का क्षय होता है, इच्छानिरोध / 18. थेर स्थविर, वृद्ध / आगम में स्थविर के तीन प्रकार बताये हैं--. (1) वयःस्थविर–६० वर्ष की आयु वाला भिक्षु / (2) प्रव्रज्यास्थविर-२० वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला भिक्षु / (3) श्रुतस्थविर-स्थानांग, समवायांग आदि का ज्ञाता। 16. पत्त-चीवर पात्र-भाजन, चीवर-वस्त्र / 20. परिणिन्वाणवत्तिय श्रमणों के देह-त्याग के निमित्त से कायोत्सर्ग का किया जाना / 21. पोरिसी एक पहर का समय / पुरुष-प्रमाण छाया-काल / 22. संयम ___ मनोनिरोध, इन्द्रिय-निग्रह, यत्नापूर्वक जीवहिंसादि का त्याग / 23. समुदाण उच्च, नीच और मध्यम कुल की भिक्षा, गोचरी। 24. सज्झाय स्वाध्याय, शास्त्र का पदन आवर्तन इत्यादि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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