Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 115
________________ शब्दार्थ अ=और अणगारे अनगार अंगस्स = अंग का अणज्भोववण्णे = विषयों में अनासक्त अंगाई = अंग (ब. वचन) अणायंबिलं = अनाचाम्ल, आयंबिल नामक तप अंतं = अन्त, अवसान, मृत्यु विशेष से रहित अंतिए - समीप, पास, नजदीक अणि विखत्तणं = अनिक्षिप्त (निरन्तर), बिना किसी अंतेवासी = शिष्य बाधा के अंब-गुठिया=आम की गुठली अणुझिय-धम्मियं = उपयोगी, रखने योग्य अंबगपेसिया =आम की फाँक अणुत्तरोववाइयदसाणं = अनुत्तरौपपातिकदशा नाम अंबाडग-पेसिया = अाम्रातक-अम्बाड़े की फांक वाले नवें अंगशास्त्र का अकलुसे = क्रोध आदि कलुषों से रहित अणेग-खंभसयसन्निविट्ठ-अनेक सैकड़ों स्तम्भों से अक्खयं = कभी नाश न होने वाला युक्त अक्खसुत्त-माला = रुद्राक्ष की माला अण्णया = अन्यदा, किसी समय अगस्थिय-संगलिया=अगस्तिक वृक्ष को फली अदीणे = दीनता से रहित अग्गहत्थेहि हाथ के पंजों से / अपराजिते = अपराजित नामक अनुत्तर विमान में अच्छीण = आँखों का अपरितंतजोगी = अविधान्त अर्थात् निरन्तर अज्ज = आर्य समाधि-युक्त अज्झयणस्स = अध्ययन का अपरिभूया = अतिरस्कृत, नीचा न देखने वाली अभयणा =अध्ययन अपुणरावत्तयं-जिससे वापिस न लौटना पड़े अज्झयणे - अध्ययन अप्पडिहय-वर-नाण-दसण-धरेणं = अप्रतिहत अट्ठ = आठ (विघ्न-बाधा से रहित) श्रेष्ठ ज्ञान और अठ्ठठ्ठोपाठ-पाठ दर्शन धारण करने वाले अट्ठण्हं = आठ के (विषय में) अप्पाणं - अपने आत्मा को अट्ठमस्स पाठवें का अप्पाणेणं = प्रात्मा से अठि-चम्म-छिरत्ताए = हड्डी, चमड़ा और नसों से अभणुण्णाते- प्राज्ञा होने पर, आज्ञा मिल जाने अट्ठी अस्थि, हड्डी अछे = अर्थ अब्भत्थिते = अन्दर उत्पन्न हुआ विचार अडमाणे = घूमता हुआ अभुग्गत-मुस्सिते = बड़े और ऊंचे अड्ढा = समृद्धा, ऐश्वर्य वाली अब्भुज्जताए = उद्यम वाली अणंतं = अन्त रहित अभप्रो= अभय कुमार अणगारं= अनगार को अभय-दएणं = अभय देने वाले अणगारस्स-अनगार-माया ममता को अभयस्स-अभयकुमार का छोडकर घर का त्याग करने वाले साधु का अभये = अभयकुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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