Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [ अनुत्तरौपपातिकदशा जंबू = जम्बू स्वामी, सुधर्मा स्वामी के मुख्य शिष्य / जेणेव - जिस श्रीर जणगीग्रो= माताएँ जोइज्जमाणेहि = दिखाई देती हुई जरणवयविहार = देश में विहार ठाणं = स्थान को जधा=जैसे ठिती = स्थिति जमालि = जमालि कुमार ढेणालिया-जंघा ढेरिणक पक्षी की जंघा जम्म-जन्म ढेणालियापोरा = ढेणिक पक्षी के सन्धिस्थान जम्मजीवियफले = जन्म और जीवन का फल 76 ण = नहीं, निषेधार्थक अव्यय जयंते-जयन्त विमान में गगरी-नगरी जयणघडणजोगचरित्त - जयन (प्राप्त योगों में णगरीए = नगरी में उद्यम) घटन (अप्राप्त योगों की प्राप्ति का णगरीतो नगरी से उद्यम) और योग (मन आदि इन्द्रियों के गरे= नगर संयम) से युक्त चरित्र वाला णमंसति-नमस्कार करता है जरग्ग-प्रोवाणहा = सूखी जूती णवरं= विशेषता-बोधक अव्यय जरग्ग-पाद = बूढे बैल का पैर (खुर) णाणत्त = नानात्व, भिन्नता जहा=जैसा, जैसे णाम = नाम जहाणामए (ते) = यथा-नामक, कुछ भी नाम वाला णाम= नाम वाला जा=जैसी णिक्खतो = निकला, गृहस्थी छोड़कर दीक्षित हो जाणएणं जानने वाले गया जाणूणं =जानुओं का णिक्खमणं = निष्क्रमण, दीक्षा होना जाणेत्ता = जानकर णिग्गता (या)=निकली जाते =बालक णिग्गते = निकला जाते-हो गया णिग्गतो(ओ) = निकला जामेव = जिसी णिम्मंस = मांस-रहित जाली = जालि अनगार को णो = नहीं, निषेधार्थक अव्यय जालि = जालि कुमार तए - इसके अनन्तर जालिस्स = जालि की तग्रो तीन जालीकुमारो= जालिकुमार तं = उस जावज्जीवाए जीवनपर्यन्त तंजहा=जैसे जाहे जब तच्चस्स= तीसरे जिणेणं = राग-द्वेष को सर्वथा जीतने वाले जिन तते = इसके अनन्तर भगवान् ने ततो- इसके अनन्तर जियसत्तु = जितशत्रु राजा को तत्थ = वहां जियसत्त = जितशत्रु नाम का राजा तरुणए (ते) - कोमल जिब्भाए = जिह्वा की, जीभ की तरुणगएलालुए = कोमल आलू जीवेण = जीव की शक्ति से तरुणग-लाउए - कोमल तुम्बा जोहा जिह्वा, जीभ तरुणिका= छोटी, कोमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org