Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 70] / अनुत्तरौपपातिकदशा प्रवचनसारोद्धार में 'यायाम' शब्द के स्थान में 'पाचाम' शब्द का प्रयोग किया गया है। प्राचार्य हरिभद्र आयामाम्ल' प्राचामाम्ल एवं प्राचाम्ल शब्दों का प्रयोग करते हैं। उक्त पुरानी व्याख्याओं से ज्ञात होता है, कि आयंबिल में प्रोदन (चावल), उड़द और सत्त इन तीन अन्नों का भोजन के रूप में प्रयोग होता था, और स्वादजय की दृष्टि से यह उपयुक्त था / आज तो प्रायः आयंबिल में बीसों चीजों का उपयोग किया जाता है। यह किस प्रकार शास्त्रविहित है ? यह विचारने योग्य है। स्वाद-जय की साधना करने वाले विवेकी साधकों को शास्त्रीय व्याख्या पर ध्यान देना आवश्यक है। परन्तु उक्त शब्द में 'अम्ल' शब्द का जो प्रयोग किया गया है, और उसका जो चतुर्थ रस अर्थ बताया गया है, उसका भोजन के साथ क्या सम्बन्ध है ? यह मालूम नहीं पड़ता। संशोधक विद्वान् इस पर विचार करें। / क्योंकि प्रायंबिल में भोजन की सामग्री में खटाई का कोई सम्बन्ध मालम नहीं पड़ता, अत अम्ल शब्द से जान पड़ता है कि श्री हरिभद्र सूरि से भी पूर्व समय में आयंबिल में कदाचित् छाछ का सम्बन्ध रहा हो। बौद्धग्रन्थ मज्झिमनिकाय के 12 वें महासोहनाद सुत्त में बुद्ध की कठोर तपस्या का वर्णन है / उसमें बुद्ध को 'पायामभक्षी' अथवा 'आचामभक्षी' कहा गया है। वहाँ आयाम शब्द का अर्थ मांड किया गया है। इस प्राचीन उल्लेख से मालूम होता है, कि आयाम का मांड अर्थ था और आयामभक्षी कहे जाने वाले तपस्वी केवल मांड ही पीते थे। जैन परिभाषा में पायाम शब्द से प्रोदन, उड़द एवं सत्त लिया गया है। परन्तु ये तीन आयाम के अर्थ में नहीं समाते / याद रखना चाहिए कि श्री हरिभद्र आदि प्राचार्यों ने पायाम का मुख्य अर्थ मांड ही बताया है। -- देखो आवश्यकनियुक्तिवृत्ति, गाथा 1603 -प्राचार्य सिद्धसेनकृत प्रवचनसारोद्धार वृत्ति -प्राचार्य देवेन्द्रकृत श्राद्धप्रतिक्रमण वृत्ति संसृष्ट गृहस्थ भोजन कर रहा हो और मुनिराज गोचरी के लिए गृहस्थ के घर पहुंचे, तब भोजन करते हुए दाता का हाथ साग, दाल, चावल वगैरह से या उसके रसदार जल से लिप्त हो-संसृष्ट हो और वह दाता उसी संसृष्ट हाथ से भिक्षा देने को तत्पर हो तो, ऐसे भिक्षान्न को संसृष्ट अन्न कहते हैं। प्रस्तुत में धन्य अनगार को ऐसे संसृष्ट हाथ से दिये हुए अन्न के लेने का संकल्प है। शास्त्रों में इसका अनेक भंग करके विवेचन किया गया है। उज्झितर्धामक जो खाद्य तथा पेय वस्तु केवल फेंकने लायक है, जिसको कोई भी खाना-पीना पसन्द नहीं करता; ऐसे खाद्य या पेय को उज्झितर्मिक कहा जाता है। उच्च, नीच, मध्यम कुल प्रस्तुत में उच्च, नीच वा मध्यम शब्द कोई जाति वा वंश की अपेक्षा से विवक्षित नहीं हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org