Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 22
________________ से उसका नाम श्रेणिक पड़ा / 35 श्रीमद्भागवत पुराण में श्रेणिक के अजातशत्रु३६ विधिसार 37 नाम भी पाये हैं। दूसरे स्थलों में विन्ध्यसेन और सूविन्द्र नाम के भी उल्लेख हए हैं / 38 आवश्यक हरिभद्रीयावत्ति और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र४० के अनुसार श्रेणिक के पिता प्रसेनजित थे। दिगम्बर ग्राचार्य हरिधरण ने थे रिणक के पिता का नाम उपश्रेणिक लिखा है।४१ प्राचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण४२ में श्रेरिणक के पिता का नाम कुणिक लिखा है जो अन्यान्य अागम और अागमेतर ग्रन्थों से संगत नहीं है। वह धेणिक का पिता नहीं किन्तु पुत्र है।४3 अन्यत्र ग्रन्थों में श्रेणिक के पिता का नाम महापद्म, हेमजित्, क्षेत्रोजा, क्षेत्प्रोजा भी मिलते हैं / 44 जैन साहित्य में श्रेणिक की छब्बीस रानियों के नाम उपलब्ध होते हैं। उनके 35 पुत्रों का भी वर्णन मिलता है / 45 ज्ञातासूत्र४६ अन्तकृद्दशा 7 निरयावलिका 8, अावश्यकचूणि, निशीथ चूरिण, त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित्र, उपदेशमाला दोघली टीका, श्रेणिकचरित्र प्रभति में उनके अधिकांश पुत्र, पौत्र, और महारानियों के भगवान महावीर के पास प्रवज्या लेने के उल्लेख हैं। वे सभी ज्ञान, ध्यान व उत्कृष्ट तप-जप की साधना कर स्वर्गवासी होते हैं। विस्तारभय से हम उन सभी का उल्लेख नहीं कर रहे हैं। उत्तराध्ययन के अनुसार श्रेणिक सम्राट ने अनाथी मुनि से नाथ और अनाथ के गुरु-गंभीर रहस्य को समझकर जैन धर्म स्वीकार किया था।४६ सम्राट् श्रेणिक क्षायिक-सम्यक्त्व-धारी थे। उन्होंने तीर्थंकर नामकर्म प्रकृति का भी बंध किया था, यद्यपि वे न तो बहुश्र त थे, और न प्रज्ञप्ति जैसे आगमों के वेत्ता ही थे, तथापि सम्यक्त्व के कारण ही वे तीर्थंकर जैसे गौरवपूर्ण पद को प्राप्त करेंगे। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार श्रेणिक की पांच सौ रानियाँ थीं। उसे उन्होंने तथागत बुद्ध का भक्त माना है। कितने ही विद्वानों की यह धारणा है कि जीवन के पूर्वार्ध में वह जैन था और उत्तरार्ध में वौद्ध बन गया था, इसलिये जैन ग्रन्थों में उसके नरक जाने का उल्लेख है। पर उन विद्वानों की यह धारणा उचित नहीं है। सच में वोट बन गया 35. धम्मपाल-उदान टीका, पृ. 140 36. श्रीमद्भागवत, द्वितीय काण्ड, पृ. 903. 37. श्रीमद्भागवत 12 / 1 / / 38. भारतवर्ष का इतिहास-पृ. 252, भगवदत्त 39. आवश्यक हरिभद्रीयावृत्ति, पत्र 671. 40. त्रिषष्ठि, 101631 41. वृहद्कथाकोष, कथाएं 55, श्लो. 1-2. 42. उत्तरपुराण 74 / 4 / 8, पृ. 471. 43. प्रौपपातिक सूत्र 44. पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्शिएन्ट इण्डिया, पृ. 205. 45. देखिये भगवान महावीर-एक अनुशीलन, पृ. 473-474. देवेन्द्रमनि शास्त्री 46. ज्ञातासूत्र 1.1. 47. अन्तकृद्दशा, वर्ग-७, अ-१ से 13, 48. निरयावलिया-प्रथम श्र तस्कन्ध ! प्रथम वर्ग, दूसरा वर्ग / 49. उत्तराध्ययन सूत्र-अ. 20. 50. न सेणियो प्रासि तया वहस्सयो, न यावि पन्नत्तिधरो न वायगो। सो ग्रागमिस्साइ जिणो भविस्सइ; समिक्ख पनाई वरं खुदंसणं // 51. विनयपिटक महावग्ग 9 / 1115. [9] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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