Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय वर्ग / [ 37 धण्णस्स सोसस्स जाव' से जहा जाव तरुणगलाउए इ वा, तरुणगएलालुए इ वा सिण्हालए इ वा तरुणए जाव [छिपणे प्रायवे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे] चिट्ठइ, एवामेव जाव' सीसं सुक्कं लुक्खं निम्मंसं अठि-चम्म-छि रत्ताए पण्णायइ, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। एवं सम्वत्थ / नवरं, उयर-भायण-कण्ण-जीहा-उठा एएसि अट्ठी न भण्णइ, चम्म-छिरत्ताए पण्णायइ त्ति भण्णइ / धन्य अनगार की नासिका का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था, जैसे—ाम की सूखी फाँक हो, आम्रातक अर्थात् एक फल विशेष (ग्रामडे) की सूखी फाँक हो, मातुलिंग अर्थात् विजौरे की सूखी फाँक हो-उन कोमल फाँकों को काट कर, धूप में सुखाने पर, जिस प्रकार वे मुरझा जाती हैं, सिकुड़ जाती हैं, उसी प्रकार धन्य अनगार की नाक भी मांस और शोणित से रहित होकर सूख गई थी। धन्य अनगार की आँखों का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था, जैसे-वीणा का छिद्र हो, बद्धीसक अर्थात् बांसुरी का छिद्र हो, प्राभातिक तारक अर्थात् प्रभातकाल का प्रभाहीन तारा हो / इस प्रकार धन्य अनगार की आँखें भी मांस और शोणित से रहित हो कर अन्दर की ओर धंस गई थी तथा वे प्रकाश-हीन-तेजोहीन होगई थी। अर्थात् आँखों में कीकी की मात्र टिमटिमाहट ही दिखलाई देती थी। धन्य अनगार के कानों का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था, जैसे----मूले की कटी हुई लम्बी-पतली छाल हो, ककड़ी (चीभड़ा) की कटी हुई लम्बी-पतली छाल हो या करेले को कटी हुई लम्बी-पतली छाल हो / इसी प्रकार धन्य अनगार के कान भी सूख गए थे। उनमें मांस और शोणित नहीं रह गया था। धन्य अनगार के शीर्ष (मस्तक) का तपोजन्य रूप-लावण्य इस प्रकार का हो गया था, जैसेसूखा तूम्बा हो, सूखा सूरण कन्द हो, सूखा तरबूज हो-इन कोमल फलों को काट कर धूप में सुखाने पर जैसे ये सूख जाते हैं, मुरझा जाते हैं, वैसे ही धन्य अनगार का मस्तक भी मांस और शोणित से रहित होने के कारण सूख गया था, मुरझा गया था। उसमें अस्थि, चर्म और शिराएं ही शेष रह गई थीं। धन्य अनगार के तपःपूत देह के समस्त अङ्गों का यह सामान्य वर्णन है। विशेषता यह है कि पेट, कान, जीभ, और होठ-इन अवयवों में अस्थि का वर्णन नहीं कहना चाहिए / केवल चर्म और शिराओं से ही इनकी पहिचान होती थी। विवेचन-इस सूत्र में धन्य अनगार के पूर्वोक्त अङ्गों के समान ही उपमा अलङ्कार से नासिका कान, नेत्रों और शिर का वर्णन किया गया है / अर्थ मूल पाठ से ही स्पष्ट है / / इस सूत्र में अनेक प्रकार के कन्दों, मूलों और फलों से धन्य अनगार के अवयवों की उपमा दी गई है। उनमें से ग्राम्रातक, मूलक वालु की और कारेल्लक ये कन्द और फल विशेषों के नाम हैं / आलुक एक प्रकार का कन्द होता है, जो वर्तमान युग में 'पाल' के नाम से प्रसिद्ध है। 1-3. देखिये वर्ग 3, सूत्र 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org