Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 58] [अनुत्तरौपपातिकदशा मेघकुमार इसी धारिणी देवी का पुत्र था, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की थी। सिंह-स्वप्न किसी महापुरुष के गर्भ में आने पर उसकी माता कोई श्रेष्ठ स्वप्न देखती है। इस प्रकार का वर्णन भारतीय साहित्य में भरा पड़ा है। जैन साहित्य में और बौद्ध साहित्य में इस प्रकार के वर्णन प्रचुर मात्रा में हैं। बुद्ध की माता माया देवी ने बुद्ध के गर्भ में आने पर रजत-राशि जैसा पड्दन्त गज देखा था। तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती की माता 14 महास्वप्न देखती है / वासुदेव की भाता 14 में से कोई भी सात स्वप्न देखती है। बलदेव की माता कोई चार स्वप्न देखती है। इसी प्रकार माण्डलिक राजा की माता एक महास्वप्न देखती है / सिंह का स्वप्न वीरतासूचक और मंगलमय माना गया है। मेधकुमार मगध सम्राट् श्रेणिक और धारिणी देवी का पुत्र था, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की थी। एक बार भगवान् महावीर राजगह के गुणशिलक उद्यान में पधारे। मेघकुमार ने भी उपदेश सुना / माता-पिता से अनुमति लेकर भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। जिस दिन दीक्षा ग्रहण की, उसी रात को मुनियों के यातायात से, पैरों को रज और ठोकर लगने से मेघ मुनि व्याकुल हो गए। भगवान् ने उन्हें पूर्वभवों का स्मरण कराते हुए संयम में धृति रखने का उपदेश दिया, जिससे मेघ मुनि संयम में स्थिर हो गए। ___ एक मास की संलेखना की। सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए / महाविदेह वास से सिद्ध होंगे। -ज्ञातासूत्र, अध्ययन 1. स्कन्दक स्कन्दक संन्यासी श्रावस्ती नगरी के रहने वाले गद्दभालि परिव्राजक के शिष्य और गौतम स्वामी के पूर्व मित्र थे / भगवान महावीर के शिष्य पिंगलक निर्ग्रन्थ के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके; फलतः श्रावस्ती के लोगों से जव सुना कि भगवान् महावीर यहाँ पधारे हैं तो उन के पास जा पहुंचे। समाधान मिलने पर वह भगवान् के शिष्य हो गए। स्कन्दक मुनि ने स्थविरों के पास रहकर 11 अंगों का अध्ययन किया। भिक्षु की 12 प्रतिमानों की क्रम से साधना की. अाराधना की। गणरत्न संवत्सर तप किया। शरी ,क्षीण और अशक्त हो गया / अन्त में राजगह के समीप विपुल-गिरि पर जाकर एक मास की संलेखना की। काल करके 12 वें देवलोक में गए / महाविदेह वास से सिद्ध होंगे / स्कन्दक मुनि की दीक्षा पर्याय 12 वर्ष की थी। -भगवती शतक 2. उद्देश 1. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org