Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ राजचिह्न के रूप में सारभूत समझकर ग्रहण किया। एतदर्थ उस का नाम भंभसार पड़ा।१६ अभिधानचिन्तामणि,२० उपदेशमाला,२१ ऋषिमण्डल प्रकरण,२२ भरतेश्वरबाहबली वत्ति२३ आवश्यकरिण२४ प्रति प्राकृत और संस्कृत के ग्रन्थों में भंभासार शब्द मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है। भंभा, भिंभा और भिभि ये सभी शब्द भेरी के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।२५ बौद्धपरम्परा में श्रेणिक का नाम बिम्बिसार प्रचलित है।२६ विम्बि का अर्थ "सुवर्ण" है। स्वर्ण के सदृश वर्ण होने के कारण उनका नाम "बिम्बिसार" पड़ा हो।७ तिब्बती परम्परा मानती है कि श्रेणिक की माता का नाम बिम्बि था अतः बह बिम्बसार कहा जाता है। जैन परम्परा का मन्तव्य है की सैनिक श्रेणियों की स्थापना करने से उसका नाम श्रेणिक पड़ा / बौद्ध परम्परा का अभिमत है कि पिता के द्वारा अठारह श्रेणियों के स्वामी बनाये जाने के कारण वह श्रेणिक बिम्बसार कहलाया / 30 जैन बौद्ध और वैदिक वाङमय में श्रेणी और प्रश्रेणीको यत्र-तत्र चर्चाएं पाई हैं। जम्बूद्वीपष्णत्ति' जातक मूगपक्खजातक 32 में श्रेणी की संख्या अठारह मानी है। महावस्तु में 33 तीस श्रेणियों का उल्लेख है / यजुर्वेद में 3 4 श्रेपन का उल्लेख है। किसी-किसी का अभिमत है कि महती सेना होने से या सेनिय मोत्र होने 19. क-सेणियकुमारेण पुणो जयढक्का कड्ढिया पविसिऊणं पिउणा तुठेण तो भणियो सो भंभासारो। ---उपदेशमाला सटीकपत्र 334-1 ख-स्थानांग वृत्ति, पत्र 461-1 ग-त्रिषष्ठिशलाका-१०१६।१०९-११२ 20. अभिधानचिन्तामणि-काण्ड 3, श्लोक 376. 21. उपदेशमाला, सटोकपत्र 324. 22. ऋषि मण्डलप्रकरण–पत्र 143. 23. भरतेश्वरबाहुबली वृत्ति-पत्र विभाग 122. 24. अावश्यकरिण-उत्तरार्ध पत्र-१५८. 25. पाइयसहमहण्ण वो-पृष्ठ 794-807. 26. इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टर्ली, भाग 14, अंक 2, जून-१९३८, पृ. 415. 27. (क) उदान अट्ठकथा 104. (ख) पाली इग्लिश डिक्शनरी पृ. 110. 28. इण्डियन हिस्टोरिकल क्वाटर्ली, भाग-१४, अंक 2, जून 1938 पृ. 413. 29. श्रेणी: कायति श्रेणिको मगधेश्वरः ---अभिधान चिन्तामणि स्वोपजवत्ति, मयंकाण्ड श्लो. 376 30. स पित्राष्टादशसु श्रेणिष्वस्तारित: अतोऽस्य श्रेण्यो बिम्बिसार इति ख्यातः (?) -विनय पिटक, गिलगित मांस्कृष्ट 31. जम्बूद्वीपपण्णत्ति, वक्षस्कार 3, पत्र 193. 32. जातक, मूगपक्खजातक, भाग 6. 33. (क) महावस्तु भाग 3, (ख) ऋषभदेव: एक परिशीलन, ले. देवेन्द्र मुनि (परिशिष्ट 3, पृ. 15) द्वि. सं. श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.) 34. (क) यजर्वेद 30 वा अध्याय (ख) वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा, प्र. 27-30 [8] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org