Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 18] [ अनुत्तरौपपातिकदशा या अस्थि) से युद्ध करना (57) मुष्टियुद्ध करना (58) बाहुयुद्ध करना (56) लतायुद्ध करना (60) बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना (61) खड्ग की मूठ आदि बनाना (62) धनुष-बाण संबंधी कौशल होना (63) चांदी का पाक बनाना (64) सोने का पाक बनाना (65) सूत्र का छेदन करना (66) खेत जोतना (67) कमल के नाल का छेदन करना (68) पत्र छेदन करना (66) कड़ा कुडल आदि का छेदन करना (70) मृत-मूच्छित को जीवित करना (71) जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और (72) काक घूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना। इस प्रकार धन्नाकुमार बहत्तर कलानों में पंडित हो गया। उसके नौ अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, जिह्वा, त्वचा और मन बाल्यावस्था के कारण जो सोये से थे-अव्यक्त चेतना वाले थे, वे जागृत हो गये। वह अठारह प्रकार की देशी भाषायों में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया / अपनी वाहनों से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हा गया / भोग भोगने का सामथ्र्य उसमें ग्रागया। साहसी होने के कारण विकालचारी अर्थात प्राधी रात में भी चल पड़ने वाला बन गया। विवेचन—द्वितीय वर्ग की समाप्ति होने पर जम्बू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! द्वितीय वर्ग का अर्थ मैंने श्रवण किया। अब मुझ पर असीम कृपा करते हुए तृतीय वर्ग का अर्थ भी सुनाइए, जिससे मुझे उसका भी बोध हो जाय। इसके उत्तर में श्रीसुधर्मा स्वामी ने प्रतिपादन किया--हे जम्बू ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने तृतीय वर्ग के दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं। उनमें से प्रथम अध्ययन धन्य कुमार के जीवन-वृत्तान्त के विषय में है / इस अध्ययन के पढ़ने से हमें उस समय की स्त्रीजाति की उन्नत अवस्था का पता लगता है / उस समय की स्त्रियाँ वर्तमान युग के समान पूरुष पर निर्भर न रहती हई, स्वयं उनकी बरावरी में व्यापार आदि कार्य करती थीं। उन्हें व्यापार आदि के विषय में सब तरह का पूरा ज्ञान होता था। यहाँ भद्रा नाम की सार्थवाही व्यापार का काम स्वयं करती थी। और विशेषता यह कि वह किसी से पराभूत नहीं होती थी-दबती नहीं थी। यह उल्लेख उन्नति के शिखर पर पहुँची हुई स्त्रीजाति का चित्र हमारी आंखों के सामने खींचता है / उन्होंने पुरुषों के समान ही मोक्षगमन भी किया। ३-तए णं सा भद्दा सस्थवाही धणं दारयं उम्मुक्कबालभावं जाव [विण्णायपरिणमित्त जोवणगमणुपत्तं बावतरिकलापंडियं गवंगसुत्तपडिबोहयं प्रद्वारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरई गंधव-गट्ट-कुसलं सिंगारागारचारवेसं संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्टिय-विलाव-निउणजुत्तोवयारकुसलं हयजोहिं गयजोहि रहजोहि बाहुजोहिं बाहुप्पमहि] अलं भोगसमत्थं यावि जाणित्ता बत्तीसं पासाय. वडिसए कारेइ, अब्भुगयमूसिए जाव [पहसिए विव मणिकणगरयणभत्तिचित्ते, वाउदधतविजयवेजयंतीपडागाछत्ताइच्छत्तक लिए, तुगे, गगणतलमभिलंघमाणसिहरे, जालंतररयणपंजरुम्मिल्लियव मणिकणगथुभियाए, वियसियसयपत्तपुंडरीए तिलयरयणद्धचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए, अंतो बहि च सण्हे तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडे, सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासादीए जाव पडिरूवे] i तेसि मज्झे एगं भवणं अणेगखंभसयसंनिविटुंजाव लीलट्ठियसालभंजियागे अन्भुग्गयसुकयवइरवेइयातोरणवरर इयसालभंजियासुसिलिटुविसिटुलट्ठसंठितपसत्थवेरुलियखंभनाणामणिकणगरयणखचितउज्जलं बहुसमसुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभाग ईहामिय. जाव भत्तिचित्तं खंभुग्गयवइरवेइयापरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org