Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 25
________________ महल में से रानियों को और बहमुल वस्तुओं को निकाल कर उसमें आग लगादी। राजा श्रेणिक ने महावीर से प्रश्न किया। महावीर ने कहा--चेलना आदि सभी रानियां पूर्ण पतिव्रता और शीलवती है। राजा श्रेणिक मन ही मन पश्चात्ताप करने लगा। वह पुनः समवसरण से शीघ्र लौटकर राजभवन की ओर चल दिया। मार्ग में अभयकुमार मिल गया / राजा के पूछने पर अभयकुमार ने महल को जला देने की बात कही। राजा ने कहा--- तुम ने अपनी बुद्धि से काम नहीं लिया ? अभय बोला-राजन ! राजाज्ञा को भंग करना कितना भयंकर है यह मुझे अच्छी तरह से ज्ञात था। राजा को अपने अविवेकपूर्ण कृत्य पर क्रोध आ रहा था। वे अपने क्रोध को वश में न रख सके और उनके मुह से सहसा शब्द निकल पड़े–'यहाँ से चला जा / भूलकर भी मुझे मुह न दिखाना / ' अभयकुमार तो इन शब्दों की ही प्रतीक्षा कर रहा था। उस ने राजा को नमस्कार किया और भगवान के चरणों में पहुंचकर दीक्षा ग्रहण करलो। राजा धणिक महलों में पहुँचा। सभी रानियाँ और बहुमूल्य वस्तुएं सुरक्षित देखकर उसे अपने वचनों के लिए अपार दुःख हुआ। वह भगवान के पास पहुंचा / पर अभय राजा श्रेणिक के पहुंचने के पूर्व ही दीक्षित हो चुका था।६५ अन्तकृदृशांग सूत्र में अभय की माता नन्दा के भी दीक्षित होकर मोक्ष जाने का उल्लेख६ है। अभय कुमार मुनि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, गुणरत्नतप को आराधना की। उनका शरीर अत्यन्त कुश हो गया।६७ तथापि साधना का अपूर्व तेज उनके मुख पर चमक रहा था। अभय कुमार में प्रबल प्रतिभा थी। कुशाग्र बुद्धि के वे धनी थे। बुद्धि की सार्थकता इसोमें है कि प्रात्म-तत्त्व की विचारणा की जाय / "बुद्ध फलं तत्त्वविचारणं च"। आज भी व्यापारीवर्ग अभय की बुद्धि को स्मरण करता है। नतन वर्ष के अवसर पर बही खातों में लिखित रूप से अभय की सी बद्धि प्राप्त करने की कामना की जाती है। बौद्ध साहित्य में अभयकुमार का नाम अभयराजकुमार मिलता है। उसकी माता उज्जयिनी की गणिका पद्मावती थी।६८ जब श्रेणिक बिम्बिसार ने उस के अद्भुत रूप की बात सुनी तो वह उसके प्रति आकृष्ट हो गया। उसने अपने मन की बात राजपुरोहित से कही। पुरोहित ने कम्पिर नामक यक्ष की आराधना की। वह यक्ष श्रेणिक बिम्बिसार को लेकर उज्जयिनी गया। वहाँ पद्मावती वेश्या के साथ संपर्क हुना। अभयराजकुमार अपनी माता के पास सात वर्ष तक रहा, और उसके पश्चात वह अपने पिता के पास राजगह पा गया। अभय राजकूमार होने पर भी रथविद्या में निपुण था। एक बार उस ने प्रकृष्ट प्रतिभा से सीमाविवाद के जटिल प्रश्न को सुलझाया था, जिससे प्रसन्न होकर बिम्बिसार ने एक अत्यन्त सुन्दरी नर्तकी उसे उपहार के रूप में प्रदान की। 65. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति पत्र-३८ से 40 / 66. अन्तकृतदशांगसूत्र वर्ग-७ / 67. अनुत्तरौपपातिक सूत्र 1 / 10 / 68 गिल्गिट मांस्कृट के अभिमतानुसार वह वैशाली की गरिएका आम्रपाली से उत्पन्न बिम्बिसार का पुत्र था / (खंड 3, 2 प. 22) थेरगाथा-अट्ठकथा 64 में श्रेणिक से उत्पन्न आम्रपाली के पुत्र का नाम मूल पाली साहित्य में "विमल कोडज" आता है जो आगे चलकर बौद्ध भिक्ष बना। 69. थेरीगाथा--- अट्ठकथा-३१-३२ 70. मज्झिमनिकाय अभयराजकुमार सुत्त / 71. धम्मपद अट्ठकथा 13-4 / [12] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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