Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 23
________________ हम पूर्व ही लिख चुके हैं कि आगामी चौबीसी में वे पद्मनाभ नामक प्रथम तीर्थकर होंगे।५२ हमारी दृष्टि से यह हो सकता है जब राजा प्रसेनजित ने श्रेणिक को निर्वासित किया था, उस समय उन्होंने प्रथम विश्राम नन्दीग्राम में लिया था। वहाँ के प्रमुख ब्राह्मणों ने राजकोप के भय से न उन्हें भोजन दिया और न विश्रान्ति के लिये आवास ही प्रदान किया। विवश होकर नन्दीग्राम के बाहर बौद्ध-विहार में उन्हें रुकना पड़ा और वहाँ के बौद्ध भिक्षत्रों ने उन्हें स्नेह प्रदान किया हो, जिससे उनके अन्तर्मानस में बौद्ध धर्म के प्रति सहज अनुराग जाग्रत हुआ हो / इसलिये निग्रंथ धर्म (जैन धर्म) का परम उपासक होने पर भी तथागत बुद्ध के प्रति भी उसमें स्नेह रहा हो और उस स्नेह के कारण ही उन्होंने बद्ध से धार्मिक चर्चाएं भी की हों। उपयूक्त पंक्तियों में हमने देखा है कि श्रेणिक एक बहुत तेजस्वी शासक था। वह जिन शासन को महान् प्रभावना करने वाला था। देवों के द्वारा की गई परीक्षा में भी वह समुत्तीर्ण हुअा था / 53 उसका अनठा कृतित्व जैनधर्म की गौरव-गरिमा में चार चाँद लगाने वाला था। प्रस्तुत प्रामम में श्रेणिक सम्राट् के राजकुमारों का वर्णन है, उनके जीवन-प्रसंगों के सम्बन्ध में भी यत्र-तत्र चर्चाएं आई हैं / विहल्ल कुमार का सम्बन्ध हार हाथी के प्रसंग को लेकर उस युग के महान संग्राम महाशिला से है किन्तु विस्तारभय से हम उन सभी का उल्लेख न कर अभयकुमार के सम्बन्ध में ही यहाँ कुछ चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। अभयकुमार प्रबल प्रतिभा का धनी था। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराएँ उसे अपना अनुयायी मानती हैं / जैन आगम साहित्य के अनुसार वह भगवान महावीर के पास आहती दीक्षा स्वीकार करता है और त्रिपिटक साहित्य के अनुसार वह बुद्ध के पास प्रवजित होता है। जैन साहित्य की दृष्टि से वह श्रेणिक की नन्दा नामक रानी का पुत्र था।५3 नन्दा वेन्नातटपूर५४ के श्रेष्ठी धनावह को पुत्री थी / कुमारावस्था में श्रेणिक वहाँ पहुँचे थे और उन्होंने नन्दा के साथ पारिणग्रहण किया था। पाठ वर्ष तक अभयकुमार अपनी माँ के साथ ननिहाल में रहे थे और उस के पश्चात् वे राजगृह प्रा गये।५५ अभय का रूप अत्यधिक सुन्दर था। वे साम, दाम, दण्ड, भेद, प्रदान, व्यापार नीति में निष्णात थे। ईहा, अपोह, मार्गरणा गवेषणा और अर्थशास्त्र में कुशल थे। चारों प्रकार की बद्धियों के धनी थे। वे श्रेणिक सम्राट के प्रत्येक कार्य के लिये सच्चे परामर्शक थे। वे राज्यधुरा को धारण करने वाले थे। वे राज्य (शासन) राष्ट्र (देश) कोष, कोठार (अन्नभण्डार) सेना वाहन नगर और अन्तःपुर की अच्छी तरह देखभाल करते थे।५६ अभयकुमार राजा श्रेणिक के मनोनीत मन्त्री थे। 57 वे जटिल से जटिल समस्यायों को अपनी कुशाग्न 52. जो खाइगसम्मदिट्ठी तुमं आगमिस्साए य उस्सप्पिणीए तत्तो उवट्टित्ता पउमनाभनामो पढमतित्थयरो भविस्ससि -महावीर चरित्र (गुणचन्द्र) 53. (क) त्रिषष्ठि. 1019, (ख) निरयावलिया टीका पत्र-५-१ 53 (क) ज्ञाताधर्मकथा 1111 ख-निरयावलिया-२३ / ग-अनुत्तरोपपातिक 11 // 54. यह नगर दक्षिण को कृष्णानदी जहाँ पूर्व के समुद्र से मिलती है वहाँ होना चाहिये, देखिये-भगवान महावीर : एक अनुशीलन : देवेन्द्रमुनि शास्त्री। 55. भरतेश्वर बाहुबली, वत्ति पत्र-३६ / 56. ज्ञाताधर्मकथा-१॥१ 57. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति पत्र-३८ / [10] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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