Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१०
ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
= संयुक्तः । 'ओयंसी' ओजस्वी = ओजः =तपः प्रभृतिप्रभावसमुत्थं तद्वान | 'तेयंसी' तेजस्वी = तेजः = अन्तर्बहिर्देदीप्यमानत्वं, तेजोलेश्यादि वा तद्वान | वच्चंसी वर्चस्वी-वर्चः =लब्धिजन्य प्रभावः तदस्यास्तीति वर्चस्वी । 'वयंसी' इति पक्षे वचस्वीतिच्छाया, तत्र वचो वचनम् = आदेयवचनं सकलमाणिगण हितावहं निरवद्य च, तदस्यास्तीति वचस्वी | 'नसंसी' यशस्वी - यशः = तपः संयमाराधनख्यातिस्तद्वान् । 'जियकोहे' 'जितक्रोधः उदयप्राप्तक्रोधविफलीकारकः । “जियमाए" जितमायः उपाधि रखना यह द्रव्य की अपेक्षा लाघव है तथा गौरवत्रय का त्याग करना यह भाव की अपेक्षा लावव है । ये दोनों प्रकार का लाघव इनमें वर्तमान था इसलिये ये लाघवसंपन्न थे । (ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियईदिए जियनिद्दे जियपरिस) तपस्या आदि के प्रभाव से इनके शरीर पर एक विशेष प्रकार का तेज था इसलिये ये ओजस्वी थे । भीतर में तथा बाहिर में इनमें एक तरह की चमक थी इसलिये ये तेजस्वी थे । अथवा ये तेजोलेश्या से विराजित थे इसलिये भी ये तेजस्वी थे । लब्धिजन्य प्रभाव से ये युक्त थे इसलिये वर्चस्वी थे । "वयंसी" इस प्रकार के पाठ में सकल प्राणियोंका जिनसे हिन होसके ऐसे निरवद्य वचन ये बोलते थे इसलिये आदेयवचनवाले होने से ये वर्चस्वी थे । तप और संयम की आराधना में एकाग्रचित्त होने के कारण इनका यश चारों ओर फैल रहा था इसलिये ये यशस्वी थे । कोकषाय के उदय को इन्होंने सर्वथा चिफल बना दिया था इसलिये ये जितक्रोध थे । उदय प्राप्त कपटकार्य के विजेता होने के करण ये जित
1
અને ગૌરવ–ત્રયને ત્યજવું, આ ભાવની દૃષ્ટિએ લાઘવ છે. આ બન્ને જાતની લઘુતા शुभनामां विद्यमान हुती, भेटला भाटे मे साधव संपन्न हता. (ओयंसी तेयंसी बच्चंसी जसंसी जियको हे जियमाणे जियलो हे जियमाए जियइदिए जियनिद्दे जिय परिसहे) तप वगेरेना प्रलावथी खेमना शरीर उपर से विशेष लतनो अलाव હતા, એથી જ એ આજસ્વી હતા. અંદર અને બહાર એમનામાં એક જાતની ચમક હતી, એથી જ એ તેજસ્વી હતા. અથવા તેઓ તેોલેશ્યાથી યુક્ત હતા, એટલા માટે પણ એ તેજસ્વી હતા. લબ્ધિજન્ય પ્રભાવથી એ યુક્ત હતા, એટલે જ એ વસ્વી हुता. "वयंसी" या चाहमा से समस्त प्राणियोनु नेनाथी हित सलवे सेवां નિરવધુ વચન એ ખેલતા હતા. એટલા માટે આય વચનવાળા હેાવાથી એ વસ્તી હતા. તપ અને સંયમને આરાધવામાં તલ્લીન હાવાને લીધે એમની કીર્તિ ચામેર પ્રસરી રહી હતી, એટલા માટે જ એ યશસ્વી હતા. ક્રોધ કષાયના ઉદયને એમણે સંપૂર્ણ` રીતે નિષ્ફળ બનાવ્યો હતો. એથી જ એ જીતાષ હતા. ઉદ્દભવેલા કપટ
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧