Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 13
________________ श्री. वीतरागाय नमः ॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालप्रतिविरचितया अनगारधर्मामृतवर्षिण्याख्यया व्याख्यया समलङ्कृतं श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रम् प्रथमो भागः ॥ अथ मङ्गलाचरणम् ॥ (उपजातिभेद बुद्धिच्छन्दः) श्री सिद्धराजं स्थिरसिद्धिराज्य'प्रदं गतं सिद्धिगतिं विशुद्धम् । निरब्जनं शाश्वतसौधमध्ये, - विराजमानं सततं नमामि ॥ १ ॥ ज्ञाताधर्मका सूत्रका हिन्दी अनुवाद भव्य जीवों को जिनकी सच्चे मनसे आराधना करने से सिद्धिरूा अविचल राज्यकी प्राप्ति ध्रुवरूप में हो जाती है । तथा जो स्वयं अकर्मरूप बहिरंग मलसे सर्वथा विनिर्मुक्त होने के कारण विशुद्ध बन चुके हैं । और इसीलिये रागद्रेषरूप अन्तरंग मल जिनका बिलकुल नष्ट हो गया है तथा अन्तरंग और बहिरंग में विशुद्ध होने की वजह से ही जिन्होंने सिद्धि गति को पा लिया है और इसी कारण जो शाश्वत धाम मुक्तिरूप महल में विराज रहे हैं ऐसे सिद्धरूप राजा को मैं सदा नमस्कार करता हूँ | :- १॥ જ્ઞાતાધમ કથાંગસૂત્રને ગુજરાતી અનુવાદ જેમની સાચા મનથી આરાધના કરવાથી ભવ્યજીવો ને સિધ્ધિરૂપ અવિચલ રાજ્યની પ્રાપ્તિ નિશ્ચિતરૂપે થાય છે, અને તેઓ પોતે અષ્ટકમ રૂપ મલથી બધી રીતે વિનિમુ ત થવાને લીધે વિશુદ્ધ બન્યા છે, અને એટલા માટે રાગદ્વેષરૂપ અન્તરંગમલ भेयोन। सर्वअअरे नाश पाभ्यो छे, तथा अन्तरंग (महर) भने महिरंग (महार) भां વિશુદ્ધ થવાના કારણથી જ જેઓએ સિદ્ધિગતિ મેળવી છે, અને એટલા માટે જેએ શાશ્વતધામ મુક્તિરૂપ મહેલમાં બિરાજે છે, અને એવા સિદ્ધરૂપ રાજા(સિદ્ધ ભગવાનને ને સદા નમસ્કાર કરૂ છું. ॥ ૧ ॥ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧

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