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चोथु अंग॥
श्री समवायाङ्ग -सूत्र ॥७॥
प्रतिपक्ष सहित होय छे तेथी प्रतिपक्ष सहित एवा आत्मादिक पदार्थोने 'एगे आया' इत्यादिक अढार सूत्रोवडे कहे छे. आ पदार्थों प्राये स्थानांगमां कहेला छे, तो पण अहीं कांइक कहेवाय छे.'.: मू०-एगे आया, एगे अणाया, एगे दंडे, एगे अदंडे, एगा किरिआ, एगा अकिरिआ, एगे लोए, एगे अलोए, एगे धम्म, एगे अधम्मे, एगे पुण्णे, एगे पावे, एगे बंधे, एगे मोक्खे, एगे आसवे, एगे संवरे, एगा वेयणा, एगा णिजरा ॥ १८॥१॥
मूलार्थः-आत्मा एक छ, अनात्मा एक छ, दंड एक छे, अदंड एक छ, क्रिया एक छे, अक्रिया एक छे, लोका एक छ, अलोक एक छे, धर्म एक छे, अधर्म एक छे, पुण्य एक छ, पाप एक छे, बंध एक छे, मोक्ष एक छ, आश्रव एक छ, संवर एक छे, वेदना एक छे, निर्जरा एक छे. १८.
टीकार्थ:-अहीं ' कथंचित् ' कोइ पण प्रकारे एटले कोइ पण अपेक्षाए ए शब्दनो अध्याहार समजवो. आ अध्याहार सर्व सूत्रोने विषे लेवानो छे. तेमां जीव प्रदेशार्थपणाए करीने असंख्यात प्रदेशवाळो छे, तो पण द्रव्यार्थपणाए करीने (द्रव्यनी अपेक्षाए) एक छे. अथवा क्षणे क्षणे पूर्वना स्वभावनो त्याग अने अपर (उत्तर-पछीना) स्वरूपनी उत्पत्तिना योगे करीने अनंत भेदवाळो (जीव ) छे, तो पण भूत, भविष्य अने वर्तमान ए त्रणे काळमां अनुगामी ( रहेला) एक चैतन्य माननी
१. स्थानांगमा विस्तारथी कह्यां छे, अहीं संक्षेपथी कहेवाय छे.