Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 676
________________ सूत्रसमाप्ति क समवाया सूत्र ॥ चोथु अंग ॥३१०॥ का नथी तेथी आ समस्तांग एम कहेवाय छे. तथा ' अज्झयणं ति त्ति'-आ समग्र अध्ययन एम कयुं छे, पण का छ, पण आमां शस्त्रपरिज्ञादिकनी जेम उद्देश विगेरे खंड-विभाग छे नहीं. छेवटनो 'इति' शब्द समाप्तिना अर्थमा प्रवर्ते छे. 'ब्रवीमीति'-हुँ कहुं छु एम सुधर्मास्वामीए जंबूस्वामीने कयु. श्रीमान महावीर वर्धमानस्वामीनी पासे जे धार्यु हतुं ते कयु. आ कहेवाथी अर्थ जाणवामां गुरुनी परंपरा जणावी, एम थवाथी ग्रंथने विषे शिष्यनी गौरवबुद्धि उपजावी कहेवाय छ अने गुरुने विषे पोतानुं बहुमान देखाडयु तथा उद्धृतपणुं दूर कयु. आ ज अर्थ शिष्यने प्राप्त थयेलो थाय छे अने आ ज मुमुक्षुनो मार्ग छे एम जणाव्यु. ॥ सूत्र--१६० ॥ SRIDESHEERESSESSETTER ॥ इति समवाय नामना चोथा अंगनी टीकानो अर्थ समाप्त.॥ SIRSINESHISINESSURESHEIGRIHSH ॥३१०॥

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