Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 677
________________ अथ प्रशस्ति. श्री महावीरस्वामीने नमस्कार थाओ, श्रेष्ठथी पण श्रेष्ठ एवा श्रीपार्श्वनाथस्वामीने नमस्कार थाओ, श्रीसरस्वती देवीने नमस्कार थाओ, उत्तम कविओनी सभाने पण नमस्कार थाओ, श्रीसंघने नमस्कार थाओ, प्रगट गुणवाळा गुरुने पण नमस्कार थाओ, तथा आ प्रकृत विधिमा सहाय करनार सर्वने नमस्कार थाओ ॥ १ ॥ . अहो ! वचनना समुद्ररूप जे उत्तम ग्रंथनुं प्रमाण प्रथम एक लाख ने चुमाळीश हजार पदोनुं हतुं, ते कालादिकना दोपथी चुलुकनी आकृतिने पामेल तथा दुर्लेखने लीधे क्षीणताने पामेल आ ग्रंथ नानो थइ गयो छे तेमां मारी जेवा अल्पबुद्धिवाळा शुं करी शके ? ॥ २ ॥ तोपण पोताना आत्माने अति कष्टमां नांखीने मने कोइक दिवस अधिक कष्ट न थाओ अने आनुं विवेचन करनारा वीजा अल्पज्ञानवाळाने आना व्याख्यानमां अधिक कष्ट न थाओ, एम विचारीने में आमां कांइक व्याख्यान कयुं छे. तेमां कांड दोषवाळु व्याख्यान थयुं होय तो तेनी परोपकारमां उद्यमवाळा डाला पुरुषोए शुद्धि करवी ॥ ३ ॥ सर्वज्ञनुं वचन होवाथी आ वचन ( सूत्र ) मां कांइपण विरोध छे ज नहीं, तो पण कोइ ठेकाणे कांइ पण ते ( विरोध ) नो • आभास थाय तो ते मनुष्यनी बुद्धिनी मंदताने लीधे, उत्तम गुरुना विरहने लीधे, अथवा अतीत काळे मुनीश्वरोए गणधरना वचनोना समूहनो फेरफार करेलो होवाथी जाणवो ॥ ४ ॥

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