Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 618
________________ 4 समवायाङ्ग सूत्र ॥ चो अंग ॥२८१ ॥ यवं ॥ सूत्रम् - १५३ ॥ मूलार्थ:-- अनंतर ( आंतरा रहित ) आहार, आहारनी आभोगता अने अनाभोगता, पुद्गलोने जाणे नहीं, अध्यअसम्यक्त्व, आटला द्वार कहेवा. (१) हे भगवान ! नारकी जीवो अनंतर आहारवाळा, त्यारपछी शरीरनी निर्वृत्ति, त्यारपछी पर्यादान, त्यारपछी परिणामता, त्यारपछी परिचारणता अने त्यारपछी विकुर्वणता छे ? हे गौतम ! हा. ए प्रमाणे आहार पद कहे. ॥ सूत्र- १५३ ॥ टीकार्थ:-' अगंतरा य' इत्यादि द्वारश्लोक कहे छे - तेमां ' अगंतरा य आहारे त्ति ' - अनंतर एटले आहारा विषयमा व्यवधान रहित अर्थात् अनंतर आहारवाळा जीव कहेवा, तथा आहारनी आभोगता, मूळमां 'अपि च' एवं वचन होवाथी अनाभोगता पण कहेवी, तथा पुद्गलोने न ज जाणे, अहीं ' एवं ' शब्द लख्यो छे तेथी न जुए एम तेना चार भंग ( चौभंगी ) सूचव्या छे, तथा अध्यवसाय अने सम्यक्त्वं कहेवुं. इति । तेमां पहेला द्वारनो अर्थ कहे छे- 'नेरइया ' इत्यादि, ' अगंतराहार त्ति -- उत्पत्तिना क्षेत्रनी प्राप्ति थाय ते ज समये आहार करे छे ? ' ततो निव्वत्तणया इति ' -- त्यारपछी शरीरनी निर्वृत्ति करे छे ? ' ततो परिवाइयणय त्ति 'त्यारपछी पर्यापान १. आ अर्थ लखेली वे प्रतने आधारे लख्यो छे. छापेली प्रतमां पर्यापानने बदले पर्यादान एंटले अंगप्रत्यंगवडे चौतरफथी आदान -ग्रहण करे छे. एम होवुं जोइए एवो प्रकाशके पोतानो मत बताव्यो छे, अने त्यारपछी ' ततो परिणामणयत्ति ' ए पाठ अने तेनी टीका छापेली प्रतमां के ज नहीं तेथी लखेली प्रतमां जोइ अर्थ लख्यो छे. आहार विचार ॥ ॥२८१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681