Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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.. मू०-कइविहे णं भंते ! वेए पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा-इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसवेए । नेरइया णं भंते ! किं इत्थीवेया पुरिसवेया णपुंसगवेया पन्नत्ता ? गोयमा ! णो इत्थीवेए णो पुवेए णपुंसगवेया पन्नत्ता । असुरकुमारा णं भंते ! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया ? गोयमा ! इत्थीवेया पुरिसवेया णो णपुंसगवेया, जाव थणियकुमारा, पुढवी आऊ तेऊ वाऊ वणस्सई बितिचउरिदियसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खसंमुच्छिममणुस्सा णपुंसगवेया, गब्भवकंतियमणुस्सा पंचिंदियतिरिया य तिवेया, जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसियवेमाणिया वि ॥ सूत्रम्-१५६ ॥
- मूलार्थ:-हे भगवान ! वेद केटला प्रकारना कह्या छे ? हे गौतम ! वेद त्रण प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणेस्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेद । हे भगवान! नारकी जीवो शुं स्त्रीवेदी छे ? पुरुषवेदी छे ? के नपुंसकवेदी कह्या छ ? हे गौतम ! स्त्रीवेदी नथी, पुरुषवेदी नथी, पण नपुंसकवेदी कह्या छ. । हे भगवान ! असुरकुमार देवो शुं स्त्रीवेदी छे ? -पुरुषवेदी छे ? के नपुंसकवेदी कह्या छे ? हे गौतम ! स्त्रीवेदी छे, पुरुषवेदी छे, पण नपुंसकवेदी नथी. यावत् स्तनितकुमार सुधी कहे. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, संमूर्छिमपंचें
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