Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 663
________________ मू० - एएसि णं नवहं वासुदेवाणं नव नियाणकारणा होत्था, तं जहा - गावी जुवे जाव माउआ ॥ ६० ॥ मूलार्थ:- आ नव वासुदेवोना नव नियाणाना कारणो हता, तें आ प्रमाणे - गाय, यूप, यावत् मातृका ॥ ६० ॥ 'टीकार्थ :- गावि जुएं संगामे तह इत्थी पराइओ रंगे । भज्जाणुराग गोट्ठी परइड्डी माउया इय ॥ ६० ॥ गाय, यूप-स्तंभ, संग्राम, स्त्रीपराभव, रंग, स्त्रीराग, गोष्ठी, परनी ऋद्धि अने मातापराभव ॥ ६० ॥ मू० - एएसिं नवहं वासुदेवाणं नव पडिसत्थू होत्था, तं जहा - अस्सग्गीवे जाव जरासंधे ॥ ६१ ॥ एए खलु पाडसत्तू जाव सचक्कहिं ॥ ६२ ॥ एक्को य सत्तमीए पंचय छट्ठीए पंचमी एको । एको उत्थीए कण्हो पुण तच्चपुढवीए || ६३ || अणिदाणकडा रामा [ सवे विय hear नियाणकडा । उडुंगामी रामा केसव सबे अहोगामी ॥ ६४ ॥ ] अट्टंतकडा रामा एगो पुण बंभलोयकप्पम्मि । एक्का से गन्भवसही सिज्झिस्सइ आगमिस्सेणं ॥६५॥ (सूत्रम् - १५८॥) मूलार्थ:-आ नव वासुदेवोना नव प्रतिशत्रु हता, ते आ प्रमाणे - अवग्रीव यावत् जरासंध ( ६१ ). आ प्रतिशत्रुओ यावत् पोताना चक्रवडे हणाया (६२), नव वासुदेवमांथी एक वासुदेव सातमी नरकपृथ्वीमां गया, पांच वासु

Loading...

Page Navigation
1 ... 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681