Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 666
________________ श्री • जंबूद्दीवे णं दीवे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए एरवए वासे दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा-- भरत विमलवाहणे सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे दढधणू दसधणू सयधणू पडिसूई सुमइ ति ॥ ऐखतमां ऐर सूत्र ॥ भावी मूलार्थ:-आ जंबूद्वीप नामना द्वीपने विपे आवती उत्सर्पिणीने विपे भरतखंडमां सात कुलकरो थशे, ते आ प्रमाणे पोथु अंग कुलकरो। मितवाहन, सुभूम, सुप्रभ, स्वयंप्रभ, दत्त, सूक्ष्म अने सुबंधु. (७१).॥ ॥३०५॥N आ जंबूद्वीप नामना द्वीपने विपे आवती उत्सर्पिणीने विपे औरवत क्षेत्रमा दश कुलकरो थशे, ते आ प्रमाणे-विमल वाहन, सीमंकर, सीमंधर, क्षेमंकर, क्षेमंधर, दृढधनु, दशधनु, शतधनु, प्रतिश्रुति अने सुमति ॥ : मू०-जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा भविस्संति, तं जहा-महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । सव्वाणुभूई अरहा, देवस्सुए य होक्खई ॥ ७२ ॥ उदए पेढालपुत्ते य, पोहिले सतकित्ति य । मुणिसुवए य अरहा, सवभावविऊ जिणे ॥ ७३ ॥ अममे णिकसाए य, निप्पुलाए य निम्ममे । चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्सेण होक्खई ॥ ७४ ॥ संबरे अणियही य, विजए विमलेति य । देवोववाए अरहा, अणंतविजए इय ॥ ७५ ॥ एए वुत्ता चउव्वीसं, भरहे वासम्मि केवली । आगमिस्सेण होक्खति, धम्मतित्थस्स । ॥३०५॥ AMI

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