Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 662
________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ बोधुं अंग ॥३०३ ॥ चोना अनुक्रमे पूर्वभवना नाम कहुं हुं ( ५५ ) -- विश्वनंदी, सुबंधु, सागरदत्त, अशोक, ललित, वाराह, धर्मसेन, अपराजित अने राजललित ( ५६ ) ॥ मू० - सिं नवहं बलदेववासुदेवाणं पुवभविया नव धम्मायरिया होत्या, तं जहा - संभूय सुदंससेस कण्ह गंगदत्ते अ । सागरसमुद्दनामे दुमसेणे य णवमए ॥ ५७ ॥ er धम्मायरिया कित्ती पुरिसाण वासुदेवाणं । पुवभवे एआसिं जत्थ नियाणाई कासी य ॥५८॥ मूलार्थ:- नव वळदेव अने वासुदेवोना पूर्वभवे नव धर्माचार्यो हता, ते आ प्रमाणे- संभूति, सुभद्र, सुदर्शन, श्रेयांस, कृष्ण, गंगदत्त, सागर, समुद्र अने नवमा दुमसेन. (५७), आ पुरुपोमां प्रधान कीर्तिवाळा वासुदेवोना पूर्व भवे धर्माचार्यो हता, के ज्यां (जेमनी पासे ) तेओए ( चारित्र लइने ) नियाणां कर्या हतां ॥ ५८ ॥ मू०-एएसं नवहं वासुदेवाणं पुत्रभवे नव नियाणभूमिओ होत्था, तं जहा - महुरा य० हथिणारं च ॥ ५९ ॥ मूलार्थ:--- आ नव वासुदेवोनी पूर्वभवे नव नियाणा करवानी भूमि हती, ते आ प्रमाणे- मथुरा यावत् हस्तिनापुर ॥५९॥ टीकार्थ :- महुरा य कणगवत्थू सावत्थी पोयणं च रायगिहं । कायंदी कोसंबी मिहिलपुरी हत्यिणपुरं च ॥ ५९ ॥ मथुरा, कनकवस्तू, श्रावस्ति, पोतनपुर, राजगृह, काकंदी, कौशांबी, मिथिलापुरी अने हस्तिनापुर || ५९ ॥ वासुदेव चळदेवना पूर्वभव नामादि । ॥३०३ ॥

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