Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 656
________________ बलदेव वासुदेव गुणवर्णन। श्री - समवायाङ्ग सूत्र ॥ चोथु अंग ॥३०॥ वाळा, समचतुरस्र संस्थान होवाथी सुरूप, सुखकारक होवाथी सुखशील जेमनो स्वभाव शुभ अथवा सुखकारक होय छे ते शुभशीळ अथवा सुखशीळ कहेवाय छे, अने शुभशीळ होवाथी सखे करीने सेवी शकाय ते सुखाभिगम्य कहेवाय छ, सर्व लोकना नेत्रोने कांत एटले अभिलाप करवा लायक जे होय ते सर्वजननयनकांत कहेवाय छे. त्यारपछी आ ण पदनो कर्मधारय समास करयो ( शुभशीलसुखाभिगम्यसर्वलोकनयनकान्ताः), ओघवल एटले व्यवच्छेद रहित (निरंतर) वळवानपणुं होवाथी प्रवाहबळवाळा, अतिबल एटले शेष सर्वजनोना बळने उल्लंघन करनारा होवाथी अतिवळवान, महावळ एटले प्रशस्त बळवाळा, अनिहत एटले निरुपक्रम आयुष्य होवाथी अथवा मोटा युद्धमां पण पृथ्वी परतेमने पाडनार कोइ नहीं होवाथी कोइना बडे नहीं हणायेला, पोते ज शत्रुओनो पराजय करनार होवाथी अपराजित-पराजय नहीं पामेला, ते ज बात कहे छशत्रुना शरीर अने सैन्यनी कदर्थना करनारा होवाथी शत्रुमर्दन-शत्रुनु मर्दन करनारा, शत्रुना इच्छित कार्यने विखेरी नांखनार होवाथी हजारो शत्रुना मानतुं मर्दन करनारा, सानुक्रोश ( दयावाळा ) एटले नमेलाने विपे द्रोह नहीं करनारा, अमत्सर एटले परना लेश पण गुणने ग्रहण करनार होवाथी मत्सर ( इर्ष्या) रहित, अचपल एटले मन, वचन अने कायानी स्थिरता होवाथी चपळता रहित, अचंड एटले कारण विना प्रवळ कोप रहित होवाथी प्रचंडता रहित, जेनुं वचन (बोलवू ) अने हास्य ए बन्ने परिमित अने कोमळ होय ते मितमंजुलप्रलापहसित एवा, तथा गंभीर एटले रोप, संतोप, शोक विगेरे विकारने नहीं देखाडनारं अथवा मेघना शब्द जेवु गंभीर, मधुर एटले कर्णने सुख आपनाएं, प्रतिपूर्ण एटले अर्थनी प्रतीति उत्पन्न करनारुं अने सत्य एवं जेमनुं वचन-वाक्य छे एवा, त्यारपछी आ वे पदनो कर्मधारय समास -

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