Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 657
________________ करवो (प्रियमंजुलप्रलापहसितगंभीरमधुरप्रतिपूर्णसत्यवचनाः), शरणे आवेलाने वत्सल एटले तेमन रक्षण करनारा, शरण्य एटले रक्षण करवामां श्रेष्ठ होवाथी शरण करवा लायक, लक्षण एटले मान (प्रमाण)विगेरे अथवा वज्र, स्वस्तिक, चक्र विगेरे चिह्नो तथा व्यंजन एटले तल, मसा विगेरे, तेना गुणो एटले मोटी ऋद्धिनी प्राप्ति विगेरे, तेणे करीने उपपेत एटले शकन्ध्वादिगणमां आ शब्द होवाथी उपपेत-सहित ते लक्षण अने व्यंजनना गुणे करीने सहित एवा, मान एटले एक द्रोण पाणीना परिमाणवाल्लं शरीर, ते केवी रीते ? ते कहे छे-पाणीनी भरेली द्रोणी( पात्र )मां पुरुष बेसे त्यारे तेमांथी जे पाणी बहार नीकळे ते जो एक द्रोण प्रमाण थाय तो ते पुरुष मानने पामेलो कहेवाय छे, उन्मान एटले M अर्धभार प्रमाणपणुं, ते केवी रीते ? ते कहे छे-बाजवामा राखेला पुरुपनो जो अर्ध भार जेटलो तोल थाय तो ते उन्मानने sil पामेलो कहेवाय छे, अने प्रमाण एटले एक सो ने आठ अंगुल ऊंचाइ होय ते. आ प्रमाणे मान, उन्मान अने प्र करीने परिपूर्ण एटले न्यूनता रहित अने गर्भाधानथी आरंभीने पालन-पोषणनी विधिवडे सुजात (सारी रीते उत्पन्न थयेलु) तथा सर्वांगसुंदर एटले समग्र अवयवनी प्रधानतावाल्लं शरीर छ जेमनुं एवा, चंद्रनी जेम सौम्य (सुंदर ) आकारवालं अर्थात् रौद्र के बीभत्स नहीं एवं, कांत एटले दीप्तिवालं, प्रिय एटले लोकोने प्रमोद उत्पन्न करनारुं छे दर्शन एटले रूप जेमनुं एवा, 'अमरिसण त्ति' अमसृण एटले काम करवामां आळस रहित अथवा अमर्पण एटले अपराध छतां पण। क्षमा करनारा, प्रकांड एटले उत्कट छे दंडप्रकार एटले आज्ञाविशेष अथवा नीतिनो भेदविशेष जेमनो एवा, अथवा दुःसाध्य कार्यने पण साधनार होवाथी प्रचंड छे दंडप्रचार एटले सैन्यनो प्रचार जेमनो एवा, अंदरनो अभिप्राय जाणी

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