Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 658
________________ बलदेव वासुदेव सूत्र । श्रीन शकाय एवो होवाथी जेओ गंभीर देखाय छे ते गंभीरदर्शनीय कहेवाय छे, त्यारपछी आबे पदनो कर्मधारय समास अमवायाङ्ग करवो अथवा तो प्रचंड दंडना प्रचारे करीने जे गंभीर देखाय छ (एम तृतीया तत्पुरुप समास करवो-प्रचंडदंडप्रचार गंभीरदर्शनीयाः) एवा, ताल अथवा तल नामना वृक्ष छे वज (मां चिह्न) जेमने ते तालध्वज बळदेव होय छे अने घोषं अंग N|उद्विद्ध एटले ऊंचो गरुडना चिह्नवाळो केतु-ध्वज छ जेमनो ते उद्विद्धगरुडकेतु वासुदेव होय छे, त्यारपछी तालध्वज वाळा अने उद्विद्धगरुडकेतुवाळा (ए वेनो द्वंद्व समास करवाथी) तालध्वजोद्विद्धगरुडकेतु एवा, मोटा वळवान होवाथी ॥३०१॥ मोटा धनुपने खेंचनारा, महासत्व( पराक्रम )रूप जळना आश्रयरूप होवाथी समुद्र जेवा समुद्ररूप ते महासत्त्वसागर एवा, तेओ ज्यारे रणांगणमा प्रहार करे छे त्यारे कोइ पण धनुर्धारी तेमने धारण करी शकनार न होवाथी दुर्धर एवा, धनुर्धर एटले जेमनुं शस्त्र धनुष छे एवा, धीर पुरुपोने विषे ज तेओ पुरुष एटले पराक्रमी छे पण कातरने विपे पराक्रमी नथी तेथी धीरपुरुष एवा, युद्धमा प्राप्त थयेली जे कीर्ति ते ज जेमने प्रधान-मुख्य छे एवा पुरुप ते युद्धकीर्तिपुरुष कहे| वाय छे, विपुल कुळमां उत्पन्न थयेला एनो अर्थ प्रसिद्ध छे, महा वळवानपणाए करीने महारत्नने एटले वज्ररत्नने अंगुष्ठ अने तर्जनी आंगळीवडे जेओ विघटन करनार एटले चूर्ण करनार ते महारत्नविघटक कहेवाय छे, केम के वज्ररत्नने अधिकरणी ( एरण ) उपर मूकी तेने अयोधन( हथोडा )वडे टीपे तोपण ते भेदातुं नथी ( एरणमां पेशी जाय छे), तेवा वज्ररत्नने तेओ भेदे छे तेथी ते दुर्भेद छ, अथवा संग्राम करवानी इच्छावाळा महासैन्यनी सागरव्यूह, शकटव्यूह विगेरे प्रकारवडे जे मोटी रचना तेने तरी जवाना रंगना रसिकपणाए करीने अने महा वळवानपणाए करीने जेओ विध मां माता धीर पुरुषलाइ पण धरूप होवा ॥३०॥

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