Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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MOI टन करे-बीखेरी नांखे ते महारचनाविघटक कहेवाय छे, पाठांतरमा 'महारणविघटका' एटले मोटा रणसंग्रामने वीखेरी
नांखनारा एवा, अर्ध भरतक्षेत्रना स्वामी, सौम्य एटले नीरुज ( रोग रहित), राजकुळवंशने विषे तिलक समान, अजितकोइथी जीताय नहीं एवा, अजित स्थवाळा, 'हलमुशलकणकपाणयः'-तेमां हळ अने मुशक एनो अर्थ प्रसिद्ध छे, आ बे हथियाररूपे जेना हाथमा छे एवा बळदेव अने जेमना हाथमां कणक एटले बाण छे एवा शाङ्ग धनुपवाळा वासुदेव होय छे, पांचजन्य नामनो शंख, सुदर्शन नामर्नु चक्र, कौमोदकी नामनी गदा-लकुटविशेष ( लाकडी), शक्ति एटले त्रिशूळ विशेष अने नंदक नामर्नु खड्ग, आ सर्वने जे धारण करे ते शंखचक्रगदाशक्तिनंदकधर वासुदेवो होय छे, मोटा प्रभाववाळो होवाथी प्रवर, श्वेत अथवा स्वच्छ होवाथी उज्ज्वळ, कांतिवाळो होवाथी शुक्लांत अथवा पाठांतरे सारं परिकर्म करेलु होवाथी सुकृत तथा मळ रहित होवाथी निर्मळ एवा कौस्तुभ नामना मणिने अने किरीट एटले मुकुटने जेओ धारण करे छे तेवा, कुंडळवडे देदीप्यमान छे मुख जेना एवा, कमळ जेवा छे नेत्र जेमना एवा, एकावळी नामर्नु भूपण (हार) कंठने विपे लाग्युं सतुं-लटक्युं सतुं जेओने वक्षःस्थळमां वर्त छे ते एकावलीकंठलगितवक्ष एवा, श्रीवत्स नामनुं सारुं महापुरुषत्वने सूचवनाएं लांछन छे जेमने ते श्रीवत्सलांछन एवा, सर्वत्र विख्यात होवाथी श्रेष्ठ यशवाळा, सर्व ऋतुमां संभवता अने सुगंधी एवा जे पुष्पो ते बडे सारी रीते रचेली-करेली जे प्रलंब एटले पग सुधी पहोंचे तेवी लांबी, शोभायमान, कांत-मनोहर, विकस्वर-फुलेली, चित्र-पांच वर्णनी अने वर-प्रधान एवी माळा रची छे एटले स्थापन करी छे अथवा रतिदा एटले सुख करनारी छे वक्षस्थळमां जेमना ते सर्वत भकुसुमरचितप्रलंबशोभमानकांत
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