Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 646
________________ चैत्य वृक्षादि विचार । (टीकार्थ-'बत्तीसं धणुयाई' ए गाथामां' निचोउगो त्ति'-नित्य एटले सर्वदा ऋतुज एटले पुष्पादिक काळ समवायाङ्ग छ जेनो ते नित्यर्तुक कहीए. 'असोगो त्ति'-अशोक नामनो जे वृक्ष समवसरणनी भूमिने मध्ये होय छे ते. मन्त्र ओ च्छन्नो सालरुक्खेणं ति'-शालवृक्षवडे अवच्छन्न हतो. आम कहेवाथी ज अशोकवृक्षनी उपर शालवृक्ष पण चोथं अंग कथंचित् होय छे एम जणाय छे.) (३६)॥ ऋषभदेव स्वामीनो चैत्यवृक्ष त्रण गाउ ऊंचो हतो (एटले के तेमना शरी स्थी चारगुणो ऊंचो हतो) अने बाकीना तीर्थकरोना चैत्यवृक्ष तेमना शरीरथी बारगुणा ऊंचा हता एम जाणवू (३७). ॥२९५॥ 1 ते जिनेश्वरोना चैत्यवृक्षो छत्र सहित, पताका सहित, वेदिका सहित, तोरणोए करीने सहित अने सुर, असुर तथा गरुड देवोए पूजित होय छे (आ अशोकवृक्षो समवसरणना होय एम संभवे छे.')(३८)॥ - मू०-एएसिं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसीसा होत्था, तं जहा-पढमेत्थ उसY भसेणे बीइए पुण होइ सीहसेणे य । चारू य वजणाभे चमरे तह सुव्वय विदब्भे ॥ ३९ ॥ • दिण्णे य वराहे पुण आणंदे गोथुभे सुहम्मे य । मंदर जसे अरिटे चक्काह सयंभु कुंभे य॥४०॥ १ आ हकीकत श्रीवीरप्रभुना अशोकवृक्षने अंगे ज छे. २ आ. वृक्षना नामो तीर्थंकर जे वृक्ष नीचे केवळज्ञान पाम्या तेना छे. ते काइ प्रभुना शरीरथी बारगुणा होता नथी. बारगणुं तो समवसरणना मध्यमा रहेलं अशोकवृक्ष ज सर्व प्रभुना संबंधमां होय छे. ॥२९५॥

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