Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 641
________________ अहीं प्रथम वज्रनाभ १, विमल २, विमलवाहन ३, धर्मसिंह ४, सुमित्र ५, धर्ममित्र ६, (११) सुंदरबाहु ७, दीर्घबाहु ८, युगबाहु ९, लष्टबाहु १०, दिन ११, इंद्रदत्त १२, सुंदर १३, माहेंद्र १४ (१२) सिंहरथ १५, मेघरथ १६, रूपी १७, अने सुदर्शन १८ जाणवा, त्यारपछी नंदन १९, वीशमा सिंहगिरि २०, (१३) अदीनशत्रु २१, शंख २२, सुदर्शन २३ अने नंदन २४ आ अवसर्पिणीमां आ तीर्थंकरोना पूर्वभवना नाम जाणवा. (१४ ) ॥ आ चोवीश तीर्थकरोनी ( दीक्षा लेवा जती वखतनी ) जे नामनी शिविकाओ हती, ते आ प्रमाणे – सुदर्शना नामनी पहेली शिविका १, सुप्रभा २, सिद्धार्था ३, सुप्रसिद्धा ४, विजया ५, वैजयंती ६, जयंती ७, अपराजिता ८, ( १५ ), अरुणप्रभा ९, चंद्रप्रभा १०, सूरप्रभा ११, अग्निप्रभा १२, विमला १३, पंचवर्णा १४, सागरदत्ता १५, नागदत्ता १६, (१६) अभयकरा १७, निर्वृतिकरा १८, मनोरमा १९, मनोहरा २०, देवकुरा २१, उत्तरकुरा २२, विशाला २३ अने चंद्रप्रभा २४ नामनी शिचिका ( १७ ). सर्व जगतना वत्सल एवा सर्व जिनेश्वरोनी आ शिविकाओ सर्व ऋतुनी शुभ छायावडे युक्त होय . (टीकार्थ :- 'सव्वोउगसुभयाए छायाए त्ति – शरदादिक सर्व ऋतुने विषे सुखने आपनारी छायावडे एटले १ आ सूत्रोनी टीकामां कांइ विशेष लखेलुं नथी तेथी टीकार्थ जूदो लख्यो नथी. पण जे ठेकाणे टीकार्थ विशेष आप्यो छे. ते साथ साथै ज काउंसमां लख्यो छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681