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- मूलार्थ:-श्रावकनी अग्यार प्रतिमाओ कही छे, ते आ प्रमाणे--समकितधारी श्रावक (समकित नामनी प्रतिमा) १, जेणे व्रतकर्म ग्रहण कर्यु होय ते २, जे हमेशा सामायिक करतो होय ते ३, पौषधोपवासमां आसक्त-तत्पर ४, दिवसे ब्रह्मचारी
अने रात्रे जेणे (भोगर्नु) परिमाण कयुं होय ते ५, दिवसे अने रात्रे पण ब्रह्मचारी, स्नान रहित, प्रकाशमां भोजन करनार INI अने धोतीआनो कळोटो (काळडी ) न मारे ते ६. सचित्त आहारनो त्यागी ७, स्वयं (जाते-पोते) आरंभनो त्यागी ८.
प्रेष्यनो त्यागी ९, पोताने उद्देशीने करेला आहारनो त्यागी १० तथा श्रमणभूत (साधु जेवो) थाय ते ११. हे आयुष्मान | श्रमण (जंबू)! आ अग्यार प्रतिमाधारी श्रावक जाणवो (१) तथा लोकांतथी अबाधावडे-व्यवधानवडे अर्थात् अग्यार सो ने अग्यार योजन अंदर आवीए त्यांथी ज्योतिषनी शरुआत थाय छे (२)। जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे मेरुपर्वतथकी अग्यार सो ने एकवीश योजन चारे बाजु जइए त्यांथी ज्योतिपचक्र चार चरे छे (३)। श्रमण भगवान् महावीरस्वामीने | अग्यार गणधरो हता, ते आ प्रमाणे-इंद्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, अकंपित, अचलभ्राता, मेतार्य अने प्रभास (४)। मूळ नक्षत्रना अग्यार ताराओ कह्या छे (५)। नीचेना त्रण ग्रेवेयकमां वसता देवोना एक सो अग्यार विमानो छ एम में कां छे (६)। मेरुपर्वत शिखर उपर पृथ्वीतळथी ऊंचाइना प्रमाणथी अग्यारमा भागे
ओछा विष्कंभवाळो कह्यो छे, अर्थात् ९९ हजार योजन उंचो छे तेना अग्यारमे भागे ९००० आवे तेटलो ओछो एटले समभूतला उपर दश हजार योजन विष्कंभवाळो छे ते उपर एक हजार योजन रहे छे. (७)
आ रत्नप्रभा पृथ्वीमा रहेला केटलाक नारकीओनी अग्यार पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। पांचमी पृथ्वीने विषे