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समवायाङ्ग
सूत्र !!
चोथुं अंग
॥२५४॥
क्रिया अने विधान वर्णन कराय छे तेथी तेनुं नाम क्रियाविशाल छे. तेना पदनुं परिमाण नव करोड छे १३, तथा चौदमुं 1. पूर्व लोक बिंदुसार नामनुं छे. ते आ लोकमां के श्रुतरूपी लोकमां अक्षरने माथे बिंदुनी जेम (सारभूत एटले) सर्वोत्तम छे तेथी - अने सर्व अक्षरोना सन्निपात ( एकठा थवा ) वडे प्रतिष्ठित ( उत्तम ) होवाथी लोकबिंदुसार कहेवाय छे. तेनुं प्रमाण साडा चार करोड पदनुं छे १४ इति । ' उप्पायपुव्वस्स ' इत्यादि सूत्र सुगम छे. विशेष ए के नियमित अर्थनो अधिकार जेमां प्रतिबद्ध ( कल ) होय एवो अध्ययननी जेवो जे ग्रंथ विशेष ते वस्तु कहेवाय छे. तथा चूडा ( चूलिका ) ना जेवी चूडाएटले के अहीं दृष्टिवादमां परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत अने अनुयोगवडे कहेला अने नहीं कहेला अर्थनो संग्रह करवामां तत्पर एवी जे ग्रंथनी पद्धति ते चूडा कहेवाय छे. ' से तं पुव्वगते त्ति' (ते आ पूर्वगत कं) ए निगमन करूं ॥ ३ ॥
" से किं तमित्यादि ' - अनुरूप ( सदृश ) अथवा अनुकूल एवी जे योग ते अनुयोग एटले पोताना अभिधेय - ( कवा लायक अर्थ )नी साथै सूत्रनो अनुरूप संबंध, ए भावार्थ छे. ते अनुयोग वे प्रकारनो कह्यो छे. ते आ प्रमाणेमूल प्रथमानुयोग अने गंडिकानुयोग. ' से किं तमित्यादि - अहीं प्रथम तो धर्म रचवा थकी तीर्थंकरो ज मूळ छे, . तेमनो सौथी प्रथम समकितनी प्राप्तिवाको पूर्व भवादिकना विषयवाळो जे अनुयोग ते मूळ प्रथमानुयोग कहेवाय छे. ते चावत मूळ सूत्रमां कयुं छे के' से किं तं मूलपढमाणुओगे ' - इत्यादि ' से त्तं मूलपढमाणुओगे ' त्यां सुधीनुं सूत्र पाठसिद्ध-सुगम अर्थवाळु छे । ' से किं तमित्यादि - अहीं एक ( सरखी ) वक्तव्यताना अर्थवाळा अधिकारने अनुसरनारी वाक्यनी पद्धतिओ गंडिका कहेवाय छे, तेमनो जे अनुयोग एटले अर्थ कहेवानो विधि ते गंडिकानुयोग कहे
दृष्टिवाद परिचय |
॥२५४॥