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जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पण्णविजंति परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदं| सिज्जंति । से एवं आया से एवं णाया से एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जति। IN से त्तं वियाहे ॥ ५॥ सूत्रम्-१४० ॥ - मूलार्थ:-हवे कइ ते व्याख्या (विवाहप्रज्ञप्ति-भगवती) छे ? व्याख्याने विष स्वसमय कहेवाय छे, परसमय | कहेवाय छ, स्वसमय परसमय कहेवाय छे, जीव कहेवाय छ, अजीव कहेवाय छे, जीव अजीव कहेवाय छ, लोक कहेवाय छे, अलोक कहेवाय छे, लोक अलोक कहेवाय छ । व्याख्याए करीने विविध प्रकारना देव, नरेंद्र अने राजर्पिओ के जेओ विविध प्रकारना संशयवाळा हता तेमणे पूछेला, (छत्रीश हजार प्रश्नोना उत्तर कहेवाय छे एम क्रियापदनो संबंध जाणवो) |
जिनेश्वरे विस्तारथी कहेला, तथा द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काळ, पर्याय, प्रदेश, परिणाम, यथास्तिभाव, अनुगम, निक्षेप, नय, का प्रमाण अने सारो उपक्रम, विविध प्रकारना आ सर्ववडे जेओए (उत्तरोए) प्रगट देखाड्यो छे एवा, तथा लोका
लोकने प्रकाश करनारा, तथा विस्तारवाळा ( मोटा) संसारसमुद्रने उतारवामां समर्थ एवा, तथा इंद्रोए पूजेला एवा, तथा भव्यजनरूपी प्रजाना हृदयने आनंद आपनारा एवा, तथा अज्ञान अने पापने नाश करनारा एवा, तथा सारी रीते जोयेला (निर्णय करेला) होवाथी दीवारूप अने ए ज कारण माटे ईहा, मति अने बुद्धिने वृद्धि करनारा एवा अन्यून (संपूर्ण) छत्रीश हजार व्याकरणो( उत्तरो)ने प्रकाश करवाथी अथवा प्रकाश करनारा घणा प्रकारना सूत्र अने तेना अर्थ शिष्योना