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समवाय ६४॥
प्रकारनो अभिग्रह. जेथी करीने आ (प्रतिमा) आठ दिनाष्टकनी होय छे, तेथी करीने चोसठ रात्रिदिवसे ते पालन करेली थाय समवायाछ. तथा (ते आ प्रमाणे-) पहेला अष्टकमां हमेशा एक एक भिक्षा ( दत्ति) होय छे, ए ज प्रमाणे बीजा अष्टकमा
सत्र ॥ हमेशां वे वे भिक्षा होय छे, यावत् आठमा अष्टकमां हमेशां आठ आठ भिक्षा होय छे, तेथी आ सर्व मळीने बसो ने चोधं अंग अठ्याशी भिक्षा थाय छे.' तेथी करीने ज 'द्वाभ्यां च' इत्यादिक लख्यु छे. अहीं यावत् शब्द लख्यो छे तेथी"अहा
कप्पं अहामग्गं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किहिया सम्मं आणाए आराहिया वि भवति" ॥१५७|| (कल्पमा कह्या प्रमाणे यतिमार्गमां कह्या प्रमाणे स्पर्श करेली, पालन करेली, शोघेली, तरी गयेली, कीर्तन करेली (संभारेली)
तथा सम्यक प्रकारे आज्ञावडे आराधन करेली पण थाय छे) एम जाणवु (१)। 'सब्वे वि णमित्यादि'-अहींथी (आ जंबूद्वीपथी) आठमा नंदीश्वर नामना द्वीपमा पूर्वादिक चार दिशाओमा चार अंजनक पर्वतो छ. ते दरेक पर्वतनी चारे दिशामां चार चार (१६) वावो छे. तेना मध्य भागमा एक एक दधिमुख नामनो पर्वत छे, ते सोळ पर्वतो पल्यंकना (पालाना) संस्थाने रहेला छे, केम के ते पर्वतो मूळ विगेरेमा दश हजार योजनना विष्कंभवाळा होवाथी विष्कमे करीने सर्वत्र समान ज छे. कोइक प्रतमा 'विक्खंभुस्सेहेणं' एचो. पाठ छे. त्यां तृतीया विभक्तिना एक वचननो लोप जाणवाथी 'विष्कमे करीने' एवो अर्थ करवो. तथा उत्सेधे करीने एटले ऊंचाइए करीने चोसठ हजार योजन छ (४)। सौधर्म कल्पने विषे वत्रीश लाख विमानो छ, ईशान कल्पमा अठ्याशी लाख अने ब्रह्मलोकमां चार लाख विमानो छे, ते सर्वे
१ एकथी आठ सुधी चडती गणतां एक अष्टकमा ३६ थाय छे. ए प्रमाणे ८ अष्टकमां होवाथी २८८ थाय छे.
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