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समुद्रने मळे छे, ते आ प्रमाणे-गंगा, सिंधु, रोहिता, रोहितांशा, हरी, हरिकांता, सीता, सीतोदा, नरकांता, नारीकांता, सुवर्णकूला, रुप्यकूला, रक्ता, रक्तवती (८)।
आ रत्नप्रभा नामनी नरकपृथ्वीनेविषे केटलाक नारकीओनी चौद पल्योपमनी स्थिति कही छ (१)। पांचमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी चौद सागरोपमनी स्थिति कही छे ( २ ) । केटलाक असुरकुमार देवोनी चौद पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ३ ) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी चौद पल्योपमनी स्थिति कही छे (४) लांतक कल्पने विष देवोनी चौद सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति कही छे (५)। महाशुक्र कल्पने विषे देवोनी जघन्य स्थिति चौद सागरोपमनी कही छे (६)। जे देवो श्रीकांत, श्रीमहित, श्रीसौमनस, लांतक, कापिठ, महेंद्र, महेंद्रकांत, महेंद्रो-IN त्तरावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय, ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति चौद सागरोपमनी कही छे (७)॥
ते देवो चौद अधमासे ( पखवाडीए ) आन ले छे प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने चौद हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२) एवा केटलाएक भवसिद्धिक जीवो छे के जेओ चौद भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥
द स्थानक सूत्र सुगम छे. विशेष एके अहीं स्थितिना सूत्रोनी पहेलां प्रथम आठ सूत्रो छे. तेमां चौद 'भूतग्राम'-भूतो एटले जीवो, तेना ग्राम एटले समूहो, ते भूतग्राम कहेवाय छे. तेमां सूक्ष्म एटले सूक्ष्म नामकर्मना उदयमां वर्तवाप' होवाथी पृथ्व्यादि एकेंद्रियो, ते केवा के अपर्याप्ता एटले के अपर्याप्त नामकर्मना उदयने लीधे पोतानी पर्याप्ति
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