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२१, गंधर्व २२, अग्निवैश्यायन २३, आतप २४, आवर्त २५, तष्टवान २६, भूमहान, २७, ऋषभ २८, सर्वार्थसिद्ध २९ | अने राक्षस ३० (३)। श्री अरनाथ अरिहंत त्रीश धनुष ऊंचा हता (४)। सहस्रार देवेंद्र देवराजने त्रीश हजार सामानिक देवो कह्या छे (५)। श्री पार्श्वनाथ अरिहंत त्रीश वर्ष गृहवास मध्ये वसीने घरथी नीकळीने अनगार-प्रवजित थया हता (६)। श्रमण भगवान महावीरस्वामी त्रीश वर्षे गृहवास मध्ये वसीने घरथी नीकळीने अनगार-प्रव्रजित थया हता (७)। रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे त्रीश लाख नरकावास कह्या छे (८)॥ - आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीओनी त्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। नीचे सातमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी त्रीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी त्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३)। उवरिमउवरिम ग्रैवेयकना देवोनी जघन्य स्थिति त्रीश सागरोपमनी कही छे (४)।जे देवो उवरिममज्झिम गैवेयक विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति त्रीश सागरोपमनी कही छे (५)॥
ते देवो त्रीश अर्धमासे (पखवाडीए ) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने त्रीश हजार वर्ष आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छे के जेओ त्रीश भव ग्रहण करवा चडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, अर्थात सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥..
टीकार्थ:-त्रीशमुं स्थानक सुगम छे. विशेष ए के-स्थितिनी पहेलां आठ सूत्रो छे तेमां मोहनीय एटले सामान्ये करीने आठ प्रकारनां कर्मों, तेमां ते चोथी प्रकृति जाणवी, तेनां जे स्थानो एटले निमित्तो, ते मोहनीय स्थानो कहेवाय
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