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- ते देवोत्रण अर्धमासे (त्रण पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले के उच्छास ले छे, निःश्वास ले छ (१). ते देवोने त्रण हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२). केटलाक भवसिद्धिक (भव्य) जीवो एवा छे के जेओत्रण भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अथ दुःखोनो अंत करशे (३).
टीकार्थः-'तओ' इत्यादि सर्व सूत्र सुगम छे. विशेष एके-अहीं (आ सूत्रमां) दंड, गुप्ति, शल्य, गारव अने विरा-1 धना आ अर्थवाळा पांच सूत्रो छे. नक्षत्रना अर्थवाळा सात सूत्रो छे, स्थितिना अर्थवाळा नव सूत्रो छे अने उच्छ्वासादिक अर्थवाळा त्रण सूत्रो छे.
तेमां जेनावडे आत्मा चारित्ररूपी ऐश्वर्यनो विनाश करी असार (सार रहित) करे, ते दंड एटले कुमार्गे प्रवर्तावेला मन विगेरे. मनरूपी जे दंड ते मनोदंड, अथवा कुमार्गे प्रवर्तावेला मनवडे जे आत्माने दंडवो ते मनोदंड कहेवाय छे. ए ज प्रमाणे बीजा बे (वचनदंड अने कायदंड ) पण जाणवा (१). तथा गोपवq ते गुप्ति कहेवाय छे. एटले के मन विगेरेनी अशुभ प्रवृत्तिनो निरोध अने शुभ प्रवृत्तिनुं करवू ते (२). तथा तोमर ( भाला ) विगेरे शल्यनी जेवा शल्य एटले दुःखदायक होवाथी मायादिक शल्य कहेवाय छे. तेमां माया एटले निकृति (कपट) रूपी जे शल्य ते मायाशल्य कहेवाय छे. अहीं सूत्रमा 'ण' शब्द लख्यो छे ते अलंकारने माटे छे. ए ज प्रमाणे बीजा वे शल्यो पण जाणवा. विशेष ए | के निदान एटले देवादिकनी समृद्धि देखवाथी के सांभळवाथी जीव पोते विचार करे के-'आ ब्रह्मचर्यादिकन अनुष्ठान करवाथी मने आवी समृद्धि हो ( प्राप्त थाओ)' ए प्रमाणे मननो अध्यवसाय करवो ते, अने मिथ्यादर्शन एटले तत्त्वार्थने