Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | अप्पेगे अंधमध्ये अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमध्ये अप्पेगे पायमच्छे अप्येगे गुप्फमध्ये अप्पेगे गुफ्फमच्छे अध्येगे जंघमध्ये २ अप्येगे | | उरुमब्भे २ अप्पेगे कडिमब्भे २ अप्पेगे णाभिमब्भे २ अप्पेगे उदरमब्मे र अप्पेगे पासम्बभे २ अप्येगे पिट्ठिमब्भे २ अप्येगे उरमब्भे २ अप्पेगे हिययमब्भे २ अप्पेगे थणमब्भे २ अप्पेगे खंधमध्ये २ अप्पेगे बाहुमब्भे २ अपेगे हत्थमध्ये २ अप्येगे अंगुलिमब्ये २ अप्पेगे हमब्भे २ अप्पेगे गीवमब्भे २ अप्येगे हणुमब्भे २ अप्पेगे होट्टमब्भे २ अप्पेगे दंतमब्भे २ अध्येगे जिब्ब्ये २ अप्येगे तालुम्बभे २ अध्येगे गलमध्ये २ अध्येगे गंडमध्ये २ अप्पेगे कण्णमब्भे २ अप्पेगे णासमब्भे २ अप्पेगे अच्छिमब्भे २ अप्पेगे भमुहममे २ अप्पेगे पिडालभब्ये २ अप्पेगे सीसमध्ये २ अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए, इत्थं सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति | १७ । एत्थं सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवति, तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं पुढविसत्थं समारंभेज्जा णेवऽण्णेहिं पुढविसत्थं समारंभावेज्जा णेवणे. सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णातकम्मेत्ति बेभि ११८ ॥ अ० १ द्वितीय उद्देशकः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से बेमि से जहावि अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवण्णे (निकायपडिवन्ने पा० ) अमायं कुव्वमाणे वियाहिए । १९ । जाए सद्धाए निक्खतो तमेव अणुपालिज्जा वियहित्ता विसोत्तियं (विजहित्ता पुव्वसंजोगं पा० ) १२० ॥ पयणा वीरा महावीहिं ।२१। लोगं च | आणाए अभिसमेच्चा अकुओभयं । २२ । से बेमि णेव सयं लोगं अब्भाइक्खिज्जा णेव अत्ताणं अब्भाइकिक्खज्जा, जे लोयं अब्भाइक्खइ ॥ श्री आचाराङ्ग सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ३ For Private And Personal Use Only

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