Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवंति ।७।अपरिण्णायकम्मा (प्र० मे) खलु अयं पुरिसे जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ|| सव्वाओ अणुदिसाओ साहेति । ८ । अणेगरूवाओ जोणीओ संधेइ (संधावइ पा० ) विरूवरूवे फासे पडिसंवेदे३ १९। तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेइआ।१०।इमस्स जीवियस्स परिवंदणमाणणपूंयणाए जाईमरणमायणाए ( भोयणाए पा०) दुक्खपडिघायहे |१११एयावंति सव्वावंति लोगसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति ।१२ । जस्सेते लोगसि कम्भसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे । १३ तिबेमि ॥ ०१ प्रथमोद्देशकः १॥ अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्संबोहे अविजाणए अस्सि लोए पव्वहिए तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा (अस्सिं) परिताति ॥१४॥ संति पाणा पुढो सिया लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एमे पवयमाया जमिणं विरुवरुवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेण पुढविसत्थं समारंभेमाणा अणेगरूवे पाणे विहिंसइ । १५ । तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणणपूयणाए जाइमरणमायणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव पुढविसत्थं समारंभइ अण्णेहिं वा पुढविसत्यं समारंभावेइ अण्णे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणइ ॥१६॥तं से अहिआए तं से अबोहीए से तं संबुन्झमाणे आयाणीयं समुठ्ठाय सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं (५० वा० अंतिए) इहमेगेसिंणातं भवति एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु णरए इच्चत्य गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेण पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ, से बेमि ५. सागरजी म. संशोधित | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र For Private And Personal Use Only

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