Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||आलीणगुत्तो परिव्वए ।पुरिसा! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? |११८ जंजाणिजा उच्चालइयं तंजाणिज्जा दूरालइयं जंजाणिज्जा दूरालइयं तं जाणिज्जा उच्चालइयं, पुरिसा अत्ताणमेवं अभिणिगिझ एवं दुक्खा पमुच्चसि पुरिसा सच्चमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए से उवट्ठिए मेहावीमारं तरइ, सहिओधम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ ११९।दुहओजीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जंसि एगे पमायति । १२० । सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो झंझाए, पासिमं दविए लोकालोकपवंचाओ मुच्चइत्तिबेमि । १२१ ॥१० ३ ३०३॥ से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च, एयं पासगस्स देसणं उवयसत्थस्स पलियं तकरस्स आयाणं सगडब्मि १२२१ जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ से एगं जाणए १२३। सव्वओ पमत्तस्स भयं, सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं, जे एग नामे से बहुं नामे जे बहुं नामे से एगं नामे, दुक्खं लोगस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जति धी (प्र० वी ) रा महाजामं, परेण पर जंति, नावखंति जीवियं । १२४ । एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढोवि सड्ढी आणाए, मेहावी लोगं च आणाए अभिसमिच्चा अकुओभयं, अस्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं १२५ जे कोहदंसी से माणदंसी जे माणदंसी से मायादंसी जे मायादंसी से लोभदंसी जे लोभदंसी से पिज्जदंसी जे पिजदंसी से दोसदंसी जे दोसदंसी से मोहदंसी जे मोहदंसी से गब्भदंसी जे गब्भदंसी से जम्मदंसी जे जम्मदंसी से मारंदसी जे भारदंसी से नरयदंसी जे नरयदंसी से तिरियदंसी जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी । से मेहावी ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147