Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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जस्सणंभिक्खुस एवं भवइ पुट्ठो अबलो अहमंसि नालमहमंसि गिहतरसंकमणं भिक्खायरियं गमणाए,से एवं वयंतस्स परो अभिहडं| असणं वा ४ आहटु दलइज्जा से पुव्वामेव आलोइज्जा आउसंतो ! गाहावई नो खलु मे कप्यइ अभिहडं असणं ४ भुत्तए वा पायए वा अन्ने वा एयप्पगारे (तं भिक्खं कोई गाहावई उक्संकभित्तु बूया आउसंतो समणा ! अहन्नं तव अढाए असणं वा ४ अभिहडं दलामि, से पुवामेव जाणेजा आउसंतो गाहावई ! जन्नं तुझं मम अढाए असणं वा ४ अभिहडं चेतेसि णो य खलु मे कप्पइ एयथ्यगारं असणं वा ४ भोत्तए वा पायए वा अन्ने वा तहप्पगारे पा०)।२१३। जस्सणं भिक्खुस्स अयं पगप्पे अहं च खलु पडिन्नत्तो अपडिन्नत्तेहिं गिलाणो अगिलाणेहिं अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइजिस्सामि, अहं वावि खलु अपडित्रत्तो पडिबत्तस्स अगिलाणो गिलाणस्स अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए, आहट्ठ परिनं अणु (प्र० आण) क्खिस्सामि आहडं च साइज्जिस्सामि, १ आहटु परिनं आणक्खिस्सामि आहडं च नो साइजिस्सामि २ आहटु परिनं नो आणक्खिस्सामि आहडं च साइज्जिस्सामि ३ आहटु परिनं नो आणक्खिस्सामि आहडं च नो साइजिस्सामि ४ एवं से अहाकिट्टियमेव धम्मं समभिजाणमाणे संते विरए सुसमाहियलेसे, तत्थावि तस्स कालपरियाए, से तत्थ विअंतिकारए, इच्व्यं विमोहाययणं हियं सुहं खमं निस्सेसं आणुगामियंतिबेमि।२१४) अ०८ ३०५ ॥
जे भिक्खू एगेण वत्तेण परिवुसिए पायबिईएण तस्स णं नो एवं भवइ बिइयं वत्थं जाइस्सामि., से अहेसणिज्जं वत्थं ॥ ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र |
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| पू. सागरजी म. संशोधित
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