Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वइज्जा, तं० असंथडाइ वा बहुनिवट्टिमफलाइ वा बहुसंभूयाइ वा भूयरुचित्ति वा, एयप्पगारं भा० असा० ॥ से० बहुसंभूया ओसही पेहाए तहावि ताओ न एवं वइज्जा तं० पक्काइवा नीलियाई वा छवीइयाइ वा लाइमाइ वा भज्जिमाइ वा बहुखज्जाइ वा, एयप्पगा० नो भासिज्जा ॥ से० बहु० पेहा तहावि एवं वइज्जा, तं० रूढाइ वा बहुसंभूयाइ वा थिराइ वा उसढाइ वा गब्भियाइ वा पसयाइ वा ससाराइ वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासि० । ३६१ । से भिक्खू वा० तहम्पगाराई सद्दाई सुणिज्जा तहावि एयाई नो एवं वइज्जा, तंजहा सुसद्देत्ति वा दुसद्देत्ति वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं नो भासिज्जा ॥ से भि० तहावि ताई एवं वइज्जा, तंजहा सुसद्द सुसद्दित्ति वा दुसद्द दुसद्दित्ति वा, एयप्पगारं असावज्जं जाव भासिज्जा, एवं रुवाई किण्हेत्ति वा ५ गंधाई सुरभिगंधित्ति वा २ रसाई तित्ताणि वा ५ फासाई कक्खडाणि वा ८ । ३६२ । से भिक्खू वा० वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च अणुवीइ निद्वाभासी निसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा ॥ एवं खलु० सया जय० त्तिबेमि । ३६३ । ३०२ भाषाध्ययनं ४ ॥ से भि० अभिकंखिज्जा वत्थं एसित्तए से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, तंजहा जंगियं वा भंगियं वा साणियं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं वा जे निग्गंथे तरुणे जुगं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारिज्जा, नो बीयं, जा निग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारिज्जा, एगं दुहत्थवित्थारं दो तिहत्थवित्थाराओ एगं चउहत्थवित्थारं, तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहिं, अह पच्छा एगमेगं संसिविज्जा । ३६४ ) से भि० परं अद्धजोयणमेराए वत्थपडिया० नो अभिसंधारिज गमणाए । ३६५ । से भि० से जं० पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ ९६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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