Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यावि हुत्था संवच्छरेण होहिइ अभिनिक्खमणं तु जिणवरिदस्सोतो अत्थसंपयाणं पवत्तई पुव्वसुराओ॥ ११२॥एगा हिरनकोडी|| अटेव अणूणगा सयसहस्सा सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासुत्ति ॥११३॥ तिनेव य कोडिसया अट्ठासीइं च हुंति कोडीओ असिई च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन ॥११४॥ वेसमणकुंडधारी देवा लोगंतिया महिड्डीया । बोहिंति य तित्थयरं पत्ररससु कम्मभूमीसु | ॥११५॥बंभंमि य कप्पंभी बोद्धव्वा कण्हराइणो मझे लोगंतिया विभाणा अट्ठसु वत्था असंखिजा ॥११६॥एए देवनिकाया भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं। सव्वजगजीवहियं अरिहं ! तित्थं पवत्तेहि ॥११७॥ तओ णं समणस्स भ० म०अभिनिक्खमणाभिप्यायं जाणित्ता भवणवइवा० जो० विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहिं २ रूवेहिं सएहिं २ नेवत्थेहिं सएहिं रचिंधेहिं सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलसमुदएणं सयाई २ जाणविमाणाई दुरूहंति सया० दुरूहित्ता अहाबायराई पोग्गलाई परिसाडंति २ अहासुहुमाई पुग्गलाई परियाइंति २ उर्ल्ड उप्पयंति उड्ढे उभ्यइत्ता ताए उक्किट्टाए सिग्धाए चवलाए तुरियाए दिव्वाएदेवगईए अहेणं ओवयमाणा २ तिरिएणं असंखिज्जाई दीवसमुद्दाई वीइक्कममाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छंति २ जेणेव उत्तरत्तियकुंडपुरसंनिवेसे तेणेव उवागच्छंति उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तेणेव झत्ति वेगेण ओवइया, तओणं सक्के देविंदे देवराया सणियं २ जाणविमाणं पट्ठवेति (प्र० पच्चो० ठवेइ) सणियं २ जाण विमाणाओ पच्चोयरइ सणियं २ एगंतमवक्कमइ एगंतमवक्कमित्ता महया वेउविएणं समुग्धाएणं समोहणइ २ एगं महं नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तं सुभं चारु कंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वइ, तस्सणं ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147