Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | धारितए वा परिहरितए वा? थिरं वा संतं नो पलिच्छिंदिय २ परिद्वविज्जा, तहम्पगारं वत्थं ससंधियं वत्थं तस्स चेव निसिरिज्जा नो णं | साइज्जिज्जा ॥ से एगइओ एयम्पगारं निग्धोसं सुच्चा नि० जे भयंतारो तहष्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं २ जाव एगाहेण वा ५ विष्पवसिय २ उवागच्छंति तह० वा वत्थाणि नो अप्पणा गिण्हंति नो अन्नमन्नस्स दलयंति तं चेव जाव नो साइज्जंति, बहुवयणेण भाणियव्वं, से हंता अहमवि मुहुत्तगं पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता जाव एगाहेण वा ५ विष्पवसिय २ उवागच्छिस्सामि, अवियाई एयं ममेव सिया, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा । ३७३ । से भि० नो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करिज्जा विवण्णाई न वण्ममंताई करिज्जा, अन्नं वा वत्थं लभिस्सामित्तिकट्टु नो अन्नमन्नस्स दिज्जा, नो पामिच्चं कुज्जा, नो वत्थेण वत्थपरिणामं कुज्जा नो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा आउसो ० ! समभिकंखसि मे वत्थं धारितए वा परिहरितए वा ?, थिरं वा संतं नो पलिच्छिंदिय २ परिद्वविज्जा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ, परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स नियाणाय नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छिजा, जाव अप्पुस्सुए०, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥ से भिक्खू वा० गामाणुगामं दूइज्माणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिजा इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा वत्थपिडयाए संपिंडिया गच्छेजा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेजा जाव गामा० दूइज्जेजज्जा ॥ से भि० दूईजमाणे अंतरा से आमोसगा पडियागच्छेजा, ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा आउसं० ! आहरेयं वत्थं देहि णिक्खिवाहि जहा रियाए णाणत्तं वत्थपडियाए, एयं खलु० सया जइज्जासित्तिबेमि । ३७४ । ३०२ वस्त्रैषणाध्ययनं ५ ॥ ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ १०१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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