Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नो ५० ॥से णं परो नेता वइजा० भ० ! आहर एयं वत्थं सीओदगवियडेण वा २ उच्छोलेत्ता वा पहोलेता वा समणसणं दाहामो०, एयं निग्धोसं० तहेव नवरं मा एयं तुमं वत्थं सीओदग० उसि० उच्छोलेहि वा पहोलेहि वा, अभिकंखसि सेसं तहेव जाव नो पडिगाहिज्जा ॥सेणं परो ने० आ० भ०! आहरेयं वत्थं कंदाणिवा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्सणंदाहामो, एयं निग्धोसंतहेव, नवरं मा एयाणि तुभं कंदाणि वा जाव विसोहेहि, नो खलु मे कप्यइ एयप्पगारे वत्थे पडिग्गाहित्तए, से सेवं वयंतस्स परो जाव विसोहित्ता दलइज्जा तहण्य० वत्थं अफासु नो ५० ॥ सिया से परो नेता वत्थं निसिरिज्जा, से पुव्वा० आ० भ० ! तुम चेव णं संतियं वत्थं अंतोअंतेणं पडिलेहिजिस्सामि, केवली बूया आ० वत्थंतेण बद्धे सिया कुंडले वा गुणे वा हिरण्णे वा सुवण्णे वा मणी वा जाव रयणावली वा पाणे वा बीए वा हरिए वा, अह भिक्खूणं पु० जं पुवामेव वत्थं अंतोतेण पडिलहिज्जा ॥ ३६९। से भि० से ज सअंडं० ससंताणं तहप्प० कथं अफा० नो ५० ॥ से भि० से जं अपंडं जाव संताणगं अनलं अथिरं अधुवं अधारणिज्ज रोइज्जतं न रूच्चइ तह० अफा० नो ५० ॥से भि० से जं० अपंडं जाव संताणगं अलं थिरं धुवं धारणिज्ज रोइज्जतं रुच्चइ तह० वत्थं फासु० पडि०| | ॥ से भि० नो नवए में वत्थेत्तिकटु नो बहुदेसिएण सिणाणेण वा जाव पधंसिज्जा ॥ से भि० नो नवए मे वत्थेतिकट्ठ नो बहुदे० सीओदगवियडेण वा २ जाव पहोइज्जा ॥ से भिक्खू वा २ दुब्भिगंधे मे वस्थितिकट्ट नो बहु. सिणाणेण तहेव बहुसीओ० उस्सिं० आलावओ।३७०से भिक्खू वा० अभिकंखिज्ज वत्थं आयावित्तए वा ५०, तहप्यगारं वत्थं नो अणंतरहियाए जाव पुढवीए संताणए ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147