Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| जाइज्जा अहापरिग्गहियं वत्थंधारिज्जा जाव गिम्हे पडिवत्रे अहापरिजुन्नं वत्थं परिद्वविज्जा २ ता अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणीया । २१५ । जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ एगे अहमंसि, न मे अस्थि कोई, न याहमवि कस्सवि, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा, लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जाव समभिजाणिया ।२१६ । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारेमाणे नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारिजा आसाएमाणे, दाहिणाओ. वामं हणुयं नो संचारिज्जा आसाएमाणे (आढायमाणे पा० ) से अणासायमाणे लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेवं अभिसम्चिा सव्वओ सव्वत्ताए सम्मत्तमेव अ (सम) भिजाणिया । २१७। जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ से गिलामि च खलु अहं इमंमि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए से अणुपुवेणं आहारं संवट्टिज्जा, अणुपुव्वेणं आहारं संवट्टित्ता कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिवुडच्चे । २१८ | अणुपविसित्ता गामं वा नगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडंबं वा पट्टणं वा दोणमुहं वा आगरं वा आसमं वा सन्निवेसं वा नेगमं वा रायहाणिं वा तणाई जाइज्जा, तणाई जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमिज्जा २ ना अप्पंडे अप्पपामे अम्पबीए अप्यहरिए अप्पोसे अध्योदए अप्पुत्तिंगपमगदगमट्टियमक्कडासंताणए पडिलेहिय २ पमज्जिय २ तणाई संथरिज्जा तणाई संथरित्ता इत्थवि समए इत्तरियं कुजा तं सच्चं सच्चवाई ओए तिने छिन्नकहकहे | आईयट्ठे अणाईए चिच्चाण भेउरं कार्यं संविहूय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अस्सिं विस्संभणया! भेरवमणुचित्रे, तत्थावि तस्स कालपरियाए पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्री आचाराङ्ग सूत्रं ॥
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