Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयरिए वा १ उवझाए वा २ पवित्ती वा ३ थेरे वा ४ गणी वा ५ गणहरे वा ६ गणावच्छेयए वा ७ अवियाई एएसिंखद्धं खद्धं दाहामि, सेणेवं वयं परो वइज्जा काम खलु आउसो ! अहापजत्तं निसिराहि, जावइयं २ परो वदइ तावइयं २ निसिरिजा, सव्वमेवं परो वयइ सव्वमेयं निसिरिजा । २७९। से एगइओ मणुन्नं भोयणजायं पडिगाहित्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएइ मा मेयं दाइयं संत दतॄणं सयमाइए आयरिए वा जाव गणावच्छेयए वा, नो खलु मे कस्सइ किंचि दायव्वं सिया माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिना से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा २ पुवामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कटु इमं खलु इमं खलुत्ति आलोइज्जा, नो किंचिवि णिगूहिजा से एगइओ अन्नयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता भयं २ भुच्चा विवित्रं विरसमाहरइ, माइ०, नो एवं । २८०१ से भिक्खू वा० से जं० अंतरुच्छुयं वा उच्छुगंडियं वा उच्छुचोयगंवा उच्छुमेरगंवा उच्छुसालगंवा उच्छुडालगंवा सिंबलिं वा सिंबलिथालगंवा अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे भोयणजाए बहुउझियधम्मिए तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा० अफा० ॥से भिक्खू वा २ से जं. बहुअद्वियं वा मंसं वा मच्छं वा बहुकंटयं अस्सिं खलु० तहप्पगारं बहु अट्ठियं वा मंसं लाभे संते जाव नो पडिगाहेजा। से भिक्खू वा० सिया णं परो बहुअहिएण मंसेण वा मच्छेण वा उवनिमंतिजा आउसंतो समणा! अभिक्खसि बहुअट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए ?, एयप्पगारं निग्घोस सुच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोइज्जा आउसोत्ति वा २ नोखलु मे कप्पड़ बहु० पडिगा०, अभिक्खसि मे दाउंजावइयं तावइयं पुग्गलं दलयाहि, मा य अट्ठियाई,से सेवं वयंतस्स परो अपि । पडिग्गहगंसि बहुअद्विअंमंसं परिभाइत्ता निहट्टु दलइज्जा, तहप्पगारं ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147