Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandie तुसिणीओ उवेहिज्जा । से णं परो नावागओ नावाग० वइ० आउसं० नो संचाएसि तुम नावं उक्कसित्तए वा ३ रजूयाए वा गहाय|| आकसित्तए वा, आहर एयं नावाए रज्जूयं सयं चेव णं वयं नावं उक्कसिमसामो वा जाव रज्जूए वा गहाय आकस्सिामो, नो से तं ५० तुसि०से णं ५० आउसं० एअंता तुमं नावं आलित्तेण वा पीढएण वा वंसेण वा क्लएण वा अवमुएण वा वाहेहि, नो से तं ५० तुसिकसे णं परो० एयंता तुमं नावाए उदयं हत्थेण वा पाएणवा मत्तेण वा पडिग्गहेण वा नावाउस्सिंचणेण वा उस्सिंचाहि, नो से तं०, से णं परो० समणा, एयं तुम नावाए उत्तिंग हत्थेण वा पाएण वा बाहुणा वा उरुणा वा उदरेण वा सीसेण वा काएण वा उस्सिंचणेण वा चेलेण वा मट्टियाए वा कुसपत्तएण वा कुविंदएण वा पिहेहि० नो से तं, से भिक्खू वा २ नावाए उत्तिंगेण उदयं आसवमाणं पेहए उववरि नावं कजलावेमाणिं पेहाए नो परं उवसंकभित्तु एवं बूया आउसंतो ! गाहावई एयं ते नावाए उदयं उत्तिंगेण आवसइ उवरुवरि नावा वा कज्जलावेइ. एयप्पगारं मणं वा वायं वा नो पुरओ कटु विहरिजा, अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे एगंतगएण अयाणं विउसेजा समाहीए, तओ सं० नावासंतारिमे य उदए.आहारियं रीइज्जा, एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं सहितेहिं एयं खलुसया जइजासित्तिबेमि।३४२॥ अ०३ 3०१॥ से णं परो णावा० आउसंतो ! समणा एयं ता तुभं छत्तगंवा जाव चम्मछेयणगं वा गिण्हाहि, एयाणि तुझं विरूवरूवाणि सत्त्थजायाणि धारेहि० एयं ता तुमं दारगंवा पज्जेहि, नो से तं ।३४३।से णं परो नावागए नावागयं वइज्जा आउसंतो ! एस णं समणे | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147